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Table of Content
مقدمة والمحتويات
معلومات أساسية عن الكلى
الفشل الكلوي
أمراض الكلى الرئيسية الأخرى
النظام الغذائي في أمراض الكلى

किडनी के रोग के संबंध में गलत धारणाए और हकीकत

गलतधारणा : किडनी के सभी रोग गंभीर होते हैं ।

हकीकत: नहीं, किडनी के सभी रोग गंभीर नहीं होते हैं। तुरंत निदान तथा उपचार से किडनी के बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं। अधिकांश मामलों में, शीध्र निदान और उपचार बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा या उसकी प्रगति को रोक सकते हैं।

गलतधारणा: किडनी फेल्योर में एक ही किडनी खराब होती है।

हकीकत:नहीं, दोनों किडनी खराब होती है। सामान्यतः जब किसी मरीज की एक किडनी बिलकुल खराब हो जाती है, तब भी मरीज को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है एवं खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जब दोनों किडनी खराब हो जाए, तब शरीर का अनावश्यक कचरा जो किडनी द्वारा साफ होता है, शरीर से नहीं निकलता है। जिससे खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। खून की जाँच करने पर क्रीएटिनिन एवं यूरिया की मात्रा में वृद्धि किडनी फेल्योर दर्शाता है।

गलतधारणा:किडनी के किसी भी रोग में शरीर में सूजन आना किडनी फेल्योर का संकेत है।

हकीकत:नहीं, किडनी के कई रोगों में किडनी की कार्य प्रणाली पूरी तरह से सामान्य होते हुए भी सूजन आती है, जैसे की नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में होता है।

गलतधारणा:किडनी फेल्योर के सभी मरीजों में सूजन दिखाई देती है।

हकीकत:नहीं, कुछ मरीज जब दोनों किडनी खराब होने के कारण डायालिसिस कराते हैं, तब भी सूजन नहीं होती है। संक्षिप्त में किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों में सूजन दिखाई देती है, परन्तु सभी मरीजों में नहीं। कुछ रोगियों को किडनी फेल्योर के अंतिम चरण में भी सूजन नहीं होती है।

गलतधारणा:किडनी की बीमारी वाले सभी रोगियों को बड़ी मात्रा में पानी पीना चाहिए।

हकीकत:नहीं, कम पेशाब उत्पादन, कई किडनी रोगों में पाया जाने वाला एक प्रमुख/महत्वपूर्ण लक्षण है। इसलिए ऐसे रोगियों में पानी के संतुलन को बनाए रखने के लिए पानी पर प्रतिबंध रखना आवश्यक है। हांलाकि उन मरीजों जो किडनी की पथरी के रोग और सामान्य तरीके से काम करने वाले किडनी के साथ मूत्रमार्ग में संक्रमण से पीड़ित हैं उनको पानी की ज्यादा मात्रा पीने की सलाह दी जाती है।

गलतधारणा:मैं स्वस्थ हूँ इसलिए मुझे किडनी की बीमारी नहीं है।

हकीकत:सी. के. डी. (क्रोनिक किडनी डिजीज) के प्रारंभिक दौर में प्रायः मरीज लक्षण रहित होते हैं। प्रयोगशाला परीक्षण में जो असामान्य रिपोर्ट प्राप्त होती है वे इस स्तर पर केवल अपनी उपस्थिति का संकेत देते हैं। उदा - माइक्रोएल्ब्युमिनयूरिया।

गलतधारणा: अब मेरी किडनी ठीक है, मुझे दवाई लेने की जरूरत नहीं हैं।

हकीकत: क्रोनिक किडनी फेल्योर के कई मरीजों में उपचार से रोग के लक्षणों का शमन हो जाता है। ऐसे कुछ मरीज निरोगी होने के भ्रम में रहकर अपने आप ही दवाई बंद कर देते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है। दवा और परहेज के अभाव से किडनी जल्द खराब होने और कुछ ही समय में मरीज को डायालिसिस का सहारा लेने का भय रहता है।

गलतधारणा: खून में क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी अधिक हो लेकिन तबियत ठीक रहे, तो चिन्ता अथवा उपचार की जरूरत नहीं है।

हकीकत: यह बहुत ही गलत ख्याल है। कई प्रकार की किडनी की बीमारियाँ किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए बिना देरी किये नेफ्रोलॉजिस्ट के पास परामर्ष के लिए जाना चाहिए।

अगले अनुच्छेद में हम सीरम क्रीएटिनिन के वृध्दि के महत्व को समझने की कोशिश करेंगे क्योकि वह क्रोनिक किडनी डिजीज के विभिन्न चरणों से संबंधित है व अति महत्वपूर्ण है।

प्रारंभिक दौर में प्रायः क्रोनिक किडनी डिजीज लक्षण रहित होती है। सीरम क्रीएटिनिन की वृध्दि अंतर्निहित किडनी की बीमारी का केवल सुराग हो सकता है।

क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज में क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी बढ़ती तभी देखने को मिलती है, जब दोनों किडनी की कार्यक्षमता में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई हो। जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 1.6 मिली ग्राम प्रतिशत से ज्यादा हो, तब कहा जा सकता है की दोनों किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो गई है। इस अवस्था में लक्षणों के अभाव से कई मरीज उपचार और परहेज के प्रति लापरवाह रहते हैं। लेकिन इस अवस्था में उपचार और परहेज से सबसे अधिक फायदा होता है। सी. के. डी. का जल्दी पता लगाना और प्रारंभिक चरण में उचित चिकित्सा सबसे फायदेमंद है। क्रोनिक किडनी डिजीज के इस स्तर और नेफ्रोलॉजिस्ट की देखरेख में उपचार से बची हुई किडनी की कार्यक्षमता को लम्बे समय तक बनाए रखने में मदद मिलती है।

सामान्यतः खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 5.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो जाए तब दोनों किडनी 80 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है। इस अवस्था में किडनी में खराबी काफी ज्यादा होती है। इस अवस्था में भी सही उपचार से किडनी को मदद मिल सकती है। लेकिन हमें पता होना चाहिए की इस अवस्था में उपचार से किडनी को मिलनेवाले सभी फायदे का अवसर हमने गंवा दिया है।

जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 8.0 से 10.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो तब दोनों किडनी बहुत ज्यादा खराब हो गई होती है। ऐसी स्थिति में दवाई, परहेज एवं उपचार से किडनी का पुनः सुधारने का अवसर हम लगभग खो चुके होते हैं। अधिकांश मरीजों को ऐसी हालत में डायालिसिस की जरूर पडती है।

गलतधारणा: एक बार डायालिसिस कराने पर बार - बार डायालिसिस कराने की आवश्यकता पडती है।

हकीकत: नहीं, एक्यूट किडनी फेल्योर में मरीजों को कुछ डायालिसिस कराने के बाद, किडनी पुनः पूरी तरह से काम करने लगती है और फिर से डायालिसिस कराने की जरूरत नहीं रहती है।

गलत धारणाओं की वजह से डायालिसिस में विलंब करने पर मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। क्रोनिक किडनी डिजीज किडनी फेल्योर का एक अपरिवर्तनीय प्रकार है।

सी. के. डी. के अंतिम चरण पर नियमित आजीवन डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। वैसे क्रोनिक किडनी फेल्योर के अंतिम चरण में तबियत अच्छी रखने के लिए नियमित डायालिसिस अनिवार्य है। संक्षेप में, कितनी बार डायालिसिस कराने की जरूरत है, वह किडनी फेल्योर के प्रकार पर निर्भर है।

गलतधारणा: डायालिसिस इलाज द्वारा किडनी फेल्योर को रोका जा सकता है।

हकीकत: नहीं, डायालिसिस से किडनी फेल्योर का इलाज नहीं होता है। डायालिसिस को किडनी का पूरक उपचार भी कह सकते हैं। किडनी की विफलता में यह एक प्रभावी और जीवन रक्षक चिकित्सा है।

यदि अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त तरल पदार्थ किसी व्यक्ति में जमा हो जाएँ तो वह मृत्यु का कारण हो सकता है। डायालिसिस वह कार्य करता है जो कार्य किडनी करने में सक्षम नहीं है। डायालिसिस गंभीर किडनी की विफलता से पीड़ित रोगियों के जीवनकाल को बढ़ाने में सहायक है।

गलतधारणा:किडनी प्रत्यारोपण में स्त्री और पुरुष एक दूसरे को किडनी नहीं दे सकते हैं।

हकीकत:नहीं, ऐसा नहीं है। एक जैसी रचना के कारण पुरुष स्त्री को और स्त्री पुरुष को किडनी दे सकते हैं।

गलतधारणा: किडनी देने से तबियत और रतिक्रिया (Sex) पर विपरीत असर पडता है।

हकीकत: नहीं, एक किडनी के साथ सामान्य दिनचर्या और रतिक्रिया में कोई अड़चन नहीं आती है।

गलतधारणा: किडनी प्रत्यारोपण के लिये, किडनी खरीदी जा सकती है।

हकीकत: नहीं, कानूनी तौर पर किडनी बेचना और उसे खरीदना दोनों अपराध हैं, जिसके लिए जेल भी हो सकती है। इसके अलावा खरीदी हुई किडनी के प्रत्यारोपण में असफल होने की संभावना ज्यादा होती है एवं प्रत्यारोपण के बाद दवा का खर्च भी काफी ज्यादा होता है।

गलतधारणा: मेरा खून का दबाव सामान्य है, इस लिये अब मुझे दवा लेने की जरूरत नहीं है। मुझे कोई तकलीफ नहीं है, तो मैं व्यर्थ में दवा क्यों लॅू?

हकीकत: उच्च रक्तचाप से पीड़ित मरीजों में खून का दबाव काबू में आने के बाद, कई मरीज ब्लडप्रेशर की दवा बंद कर देते हैं। कुछ मरीजों में खून का दबाव ज्यादा होने के बावजूद कोई तकलीफ नहीं होती है। इसलिये वे दवा का सेवन बन्द कर देते हैं। यह गलत धारणा है।

खून के ऊँचे दबाव के कारण दीर्घ समय में किडनी, ह्रदय, तथा दिमाग पर इसका गंभीर असर हो सकता है। ऐसी स्थिति को टालने के लिए, कोई तकलीफ नहीं होने के बावजूद, उचित तरीके और समय से दवा का नियमित सेवन एवं परहेज करना अत्यंत जरूरी होता है।

गलतधारणा: किडनी सिर्फ पुरूषों में होती है, जो दोनों पैरों के बीच थैली में होती है।

हकीकत: पुरुष और स्त्री में दोनों में किडनी की रचना एवं आकार एक समान होता है, जो पेट के पीछे और उपरी भाग में रीढ़ की हड्डी के बगल में दोनों तरफ होती है। पुरूषों में पैरों के बीच थैली में गोली के आकार के अंग को वृषण (टेस्टीज) कहते हैं, जो प्रजनन का एक महत्वपूर्ण अंग है।