Read Online in Sindhi
Table of Content
प्रस्तावना और विषय
किडनीअ शुरुआती बाबत
किडनी फेल्यर
किडनीअ जूं ॿियूं वॾियूं बीमारियूं
किडनीअ जे बीमारियुनि में खाधो

वंशानुगत रोग : पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज

वंशानुगत किडनी रोगों में पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (पी. के. डी.) सबसे ज्यादा पाया जानेवाला रोग है। इस रोग में मुख्य असर किडनी पर होता है। दोनों किडनियों में बड़ी संख्या में सिस्ट (पानी भरा बुलबुला) जैसी रचना बन जाते है। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मुख्य कारणों में एक कारण पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज भी होता है। किडनी के अलावा कई मरीजों में ऐसी सिस्ट लीवर, तिल्ली, ऑतों और दिमाग की नली में भी दिखाई देती है।

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज का फैलाव:

पी. के. डी. स्त्री, पुरुष और अलग-अलग जाती और देशों के लोगों में एक जैसा होता है।

अनुमानतः 1000 लोगों में से एक व्यक्ति में यह रोग दिखाई देता है।

किडनी रोग के मरीज जिन्हें डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, उनमे से 5 % रोगियों में पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (PKD) नामक बीमारी पाई जाती है।

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज रोग किसको हो सकता है? Kidney In Hindi

वयस्कों (Adullt) में होनेवाला पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज रोग ऑटोजोमल डोमिनेन्ट प्रकार का वंशानुगत रोग है, जिसमें मरीज के 50 प्रतिशत यानी कुल संतानों में से आधी संतानों को यह रोग होने की संभावना रहती है।

पी. के. डी. के मरीजों के परिवार से कौन-कौन से सदस्यों की जाँच की जानी चाहिए?

पी. के. डी. के मरीज के भाई, बहन ओर बच्चों की जाँच पी. के. डी. के लिए करनी चाहिए। इसके अलावा उसके माता-पिता के भाई-बहन जिनके यह बीमारी मरीज को विरासत में मिली है, उनकी भी जाँच करवानी चाहिए।

पी. के. डी. रोग को फैलने से क्यों नहीं रोका जा सकता है?

साधारणतः जब पी. के. डी. का निदान होता है, उस समय मरीज की उम्र 35 से 55 साल के आसपास होती है। ज्यादातर पी. के. डी. के मरीजों में इस उम्र में आने से पूर्व बच्चों का जन्म हो चुका होता है। इस कारण से पी. के. डी. को भविष्य की पीढी में होने से रोका जाना असंभव है।

पी. के. डी. का किडनी पर क्या असर होता है?
  • पी. के. डी. में दोनों किडनी में गुब्बारे या बुलबुले जैसे असंख्य सिस्ट पाये जाते हैं।
  • विविध आकार के असंख्य सिस्ट में से छोटे सिस्ट का आकार इतना छोटा होता है कि सिस्ट को नंगी आँखों से देखना संभव नहीं होता है और बड़े सिस्ट का आकार दस से. मी. से अधिक व्यास का भी हो सकता है।
  • समयानुसार इन छोटे बड़े सिस्टों का आकार बढ़ने लगता है, जिससे किडनी का आकार भी बढ़ता जाता है।
  • इस प्रकार बढ़ते हुए सिस्ट के कारण किडनी के कार्य करने वाले भागों पर दबाव आता है, जिसकी वजह से उच्च रक्तचाप हो जाता है। और किडनी की कार्यक्षमता क्रमशः कम हो जाती है।
  • इस बीमारी में कई सालों बाद क्रोनिक किडनी फेल्योर हो जाता है और मरीज गंभीर किडनी की खराबी (एंड स्टेज किडनी की बीमारी) की ओर अग्रसर हो जाता है। अंत में डायालिसिस ओर किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।
किडनी के वंशानुगत रोगों में पी. के. डी. सबसे ज्यादा पाया जानेवाला रोग है।

लक्षण

पी. के. डी. के लक्षण क्या हैं?

सामान्यतः 30 से 40 साल की उम्र तक के मरीजों में कोई लक्षण देखने को नहीं मिलता है। उसके बाद देखे जानेवाले लक्षण इस प्रकार के होते हैं:

  • खून के दबाव में वृध्दि होना।
  • पेट में दर्द होना, पेट में गाँठ का होना, पेट का बढ़ना।
  • पेशाब में खून का जाना।
  • पेशाब में बार-बार संक्रमण होना।
  • किडनी में पथरी होना।
  • रोग के बढ़ने के साथ ही क्रोनिक किडनी फेल्योर के लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।
  • किडनी का कैंसर होने की संभावना में वृध्दि।
  • शरीर के अन्य भाग जैसे मस्तिष्क, लिवर, आंत आदि में भी किडनी की तरह सिस्ट हो सकते हैं। इस कारण उन अंगों में भी लक्षण दिखाई सकते हैं। पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज के रोगी को एन्यूरिज्म (मस्तिष्क घमनी विस्फार), पेट की दीवार में हर्निया, जिगर के सिस्ट में संक्रमण, पेट में डाइवर्टीक्यूले या छेद ओर ह्रदय वाल्व में खराबी जैसी जटिलतायें हो सकती है।

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज के लगभग 10 % मरीजों में धमनी विस्फार (एन्यूरिज्म) हो सकता है जिसमे रक्त वाहिका की दीवार के कमजोर होने के कारण उसमें एक उभार आ जाता है। धमनी विस्फार के कारण सिरदर्द हो सकता है। इसका फटना खतरनाक हो सकता है जिससे स्ट्रोक एवं मृत्यु हो सकती है।

क्या पी. के. डी. के निदान हुए सभी मरीजों की किडनी फेल हो जाती है?

नहीं, पी. के. डी. का निदान होनेवाले सभी मरीजों की किडनी खराब नहीं होती है। पी. के. डी. मरीजों में किडनी फेल्योर होने की संख्या 60 साल की आयु में 50 प्रतिशत और 70 साल की आयु में 60 प्रतिशत होती है। पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (PKD) के मरीजों में क्रोनिक किडनी फेल्योर होने का खतरा पुरुष वर्ग में, कम उम्र में उच्च रक्तचाप, पेशाब में प्रोटीन या खून जाना, या बड़े आकर की किडनी वाले लोगों में ज्यादा होता है।

40 साल की उम्र में होनेवाले पी. के. डी. के मुख्य लक्षण पेट में गाँठ होना और पेशाब में खून आना है।

निदान

पी. के. डी. का निदान किस प्रकार होता है?
1. किडनी की सोनोग्राफी:

सोनोग्राफी की मदद से पी. के. डी. का निदान आसानी से कम खर्च में हो जाता है।

2. सी. टी. स्कैन:

पी. के. डी में यदि सिस्ट का आकार बहुत छोटा हो, तो सोनोग्राफी से यह पकड़ में नहीं आती है। इस अवस्था में पी. के. डी. का शीघ्र निदान सी. टी. स्कैन द्वारा हो सकता है।

3. पारिवारिक इतिहास:

यदि परिवार के किसी भी सदस्य में पी. के. डी. का निदान हो, तो परिवार के अन्य सदस्यों में पी. के. डी. होने की संभावना रहती है।

4. पेशाब एवं खून की जाँच:

पेशाब की जाँच : पेशाब में संक्रमण और खून की मात्रा जानने के लिए।

खून की जाँच : खून में यूरिया, क्रीएटिनिन की मात्रा से किडनी की कार्यक्षमता के बारे में पता लगता है।

पी. के. डी. वंशानुगत रोग होने की वजह से मरीज के परिवार के सदस्यों की जाँच करवाना आवश्यक है।

5. जेनेटिक्स की जाँच :

शरीर की संरचना जीन अर्थात गुणसूत्रों (Chromosomes) के द्वारा निर्धारित होती है। कुछ गुणसूत्रों की कमी की वजह से पी. के. डी. हो जाता है। भविष्यमें इन गुणसूत्रों की उपस्थिति का निदान विशेष प्रकार की जाँचों से हो सकेगा, जिससे कम उम्र के व्यक्ति में भी पी. के. डी. रोग होने की संभावना है या नहीं यह जाना जा सकेगा।

पी. के. डी. के कारण होनेवाले किडनी फेल्योर की समस्या को किस प्रकार कम किया जा सकता है?

पी. के. डी. एक वंशानुगत रोग है, जिसे मिटने या रोकने के लिए इस समय में कोई भी उपचार उपलब्ध नहीं है।

पी. के. डी. वंशानुगत रोग है। अगर परिवार के किसी एक सदस्य में पी. के. डी. का निदान हो जाए तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की जाँच से यह जान लेना जरुरी है की अन्य सदस्यों को यह रोग तो नहीं है।

पी. के. डी. का जितना जल्दी निदान हो, उतना ही ज्यादा उपचार का फायदा होता है।

उपचार

पी. के. डी. का उपचार:

पी. के. डी. असाध्य है। फिर भी इस रोग का उपचार कराना किसलिए जरुरी है?

हाँ, उपचार के बाद भी यह रोग साध्य नहीं है। फिर भी इस रोग का उपचार कराना जरुरी है, क्योंकि जरुरी उपचार कराने से किडनी को होनेवाले नुकसान से बचाया जा सकता है और किडनी खराब होने की गति को सीमित रखा जा सकता है। पी. के. डी. के मरीज में अगर उच्च रक्तचाप का शीघ्र निदान ओर सही उपचार हो तो किडनी की खराबी होने को रोका या धीमा किया जा सकता है। पी. के. डी. का मरीज यदि अपनी जीवन शैली ओर आहार में संशोधन कर लेता है तो वह अपने ह्रदय और किडनी को सुरक्षा प्रदान करता है। स्क्रीनिंग का एक बड़ा नुकसान यह है की मरीज अपनी बीमारी के बारे में और उत्तेजित हो जाता है, वह भी ऐसे समय व्यक्ति में न तो कोई लक्षण दिखते हैं और न ही उसे किसी प्रकार के उपचार की आवश्यकता होती है।

मुख्य उपचार:

  • पी. के. डी. के रोगियों को समय-समय पर जाँच और निगरानी की सलाह दी जाती है। भले ही उन्हें किसी भी प्रकार के इलाज की जरूरत न हो।
  • उच्च रक्तचाप को सदैव नियंत्रित रखना।
  • मूत्रमार्ग में संक्रमण और पथरी की तकलीफ होते ही तुरंत उचित उपचार कराना।
  • शरीर पर सूजन नहीं हो तो ऐसे मरीज को ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए, जिससे संक्रमण, पथरी आदि समस्या को कम करने में सहायता मिलती है।
  • पेट में होनेवाले दर्द का उपचार किडनी को नुकसान नहीं पहुँचाने वाली विशेष दवाओं द्वारा ही किया जाना चाहिए।
  • किडनी के खराब होने पर 'क्रोनिक किडनी फेल्योर का उपचार' इस भाग में किए गए चर्चानुसार परहेज करना और उपचार लेना आवश्यक है।
  • बहुत कम रोगियों में दर्द, खून के बहाव, संक्रमण या किसी रुकावट की वजह से सिस्ट की शल्य चिकित्सा या रेडियोलॉजिकल ड्रेनेज की आवश्यकता होती है।

पी. के. डी. के मरीज को डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए ?

पी. के. डी. के मरीज को डॉक्टर से संपर्क तुरंत स्थापित करना चाहिए अगर उसे

  • बुखार, अचानक पेट में दर्द या लाल रंग का पेशाब हो।
  • गंभीर सिरदर्द हो या सिरदर्द बार-बार हो।
  • किडनी पर आकस्मिक चोट, छाती में दर्द, भूख न लगना, उल्टी होना, मांसपेशियों में गंभीर कमजोरी, विभ्रान्ति, उनींदापन, बेहोशी या शरीर में ऐंठन हो।