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किडनी प्रत्यारोपण

किडनी प्रत्यारोपण से पहले जानने योग्य बातें

 

किडनी प्रत्यारोपण चिकित्सा विज्ञान की प्रगति की निशानी है। क्रोनिक किडनी डिजीज की अंतिम अवस्था के उपचार का यह उत्तम विकल्प है। सफल किडनी प्रत्यारोपण के बाद मरीज का जीवन अन्य व्यक्ति के जैसा ही स्वस्थ और सामान्य होता है।

किडनी प्रत्यारोपण के विषय में चर्चा हम चार भागों में करेंगे:

  1. किडनी प्रत्यारोपण से पहले जानने योग्य बातें
  2. किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन की जानकारी
  3. किडनी प्रत्यारोपण के बाद जानने योग्य आवश्यक जानकारी
  4. केडेवर किडनी प्रत्यारोपण

किडनी प्रत्यारोपण से पहले जानने योग्य बातें

किडनी प्रत्यारोपण क्या है ?

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज में अन्य व्यक्ति (जीवित अथवा मृत) की एक स्वस्थ किडनी ऑपरेशन द्वारा लगाने को किडनी प्रत्यारोपण कहते हैं।

किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत कब नहीं होती है?

किसी भी व्यक्ति की दोनों किडनी में से एक किडनी खराब होने पर शरीर के किडनी से संबंधित सभी जरुरी काम दूसरी किडनी की मदद से चल सकते हैं। एक्यूट किडनी डिजीज में उचित उपचार (दवा और कुछ मरीजों में अल्प समय से लिए डायालिसिस) से किडनी पुनः संपूर्ण रूप से कार्य करने लगती है। ऐसे मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं होती है।

किडनी प्रत्यारोपण की खोज क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीजों के लिए एक वरदान है।
किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता कब पडती है?

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज की दोनों किडनी जब ज्यादा खराब हो जाती है (85 प्रतिशत से ज्यादा), तब दवाई के बावजूद मरीज की तबियत बिगड़ने लगती है और नियमित डायालिसिस की जरूरत पड़ती है। क्रोनिक किडनी डिजीज के ऐसे मरीजों के लिये उपचार का दूसरा असरकारक विकल्प किडनी प्रत्यारोपण है।

किडनी प्रत्यारोपण क्यों जरुरी है?

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज जब दोनों किडनी पूरी तरह खराब हो जाती है तब अच्छी तबियत रखने के लिये सप्ताह में तीन बार नियमित डायालिसिस और दवाई की जरूरत रहती है। इस प्रकार के मरीज की अच्छी तबियत निर्धारित दिन और समय पर किये जानेवाले डायालिसिस पर निर्भर करती है। किडनी प्रत्यारोपणके बाद मरीज को इन सबसे मुक्ति मिल जाती है। सफलतापूर्वक किया गया किडनी प्रत्यारोपण उत्तम तरीके से जीने के लिये एकमात्र संपूर्ण और असरकारक उपाय है। किडनी प्रत्यारोपण जीवन के उपहार के रूप में जाना जाता है। इससे जीवन बचता है और मरीज को सामान्य जीवन का आनंद का अवसर मिलता है।

किडनी प्रत्यारोपण से क्या क्या लाभ होता है?

सफल किडनी प्रत्यारोपण के लाभ:

  1. जीवन जीने की उच्च गुणवत्ता। मरीज सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकता है और अपना रोज का कार्य भी कर सकते है।
  2. डायालिसिस करने के बंधन से मरीज मुक्त हो जाता है। रोगियों को हीमोडायालिसिस के उपचार के दौरान, अनेक जटिलताओं एवं असुविधाओं का सामाना करना पड़ता है। किडनी प्रत्यारोपण से आर्थिक खर्च एवं समय की भी बचत होती है।
  3. आहार में कम परहेज करना पडता है।
  4. मरीज शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।
सफल किडनी प्रत्यारोपण क्रोनिक किडनी डिजीज की अंतिम अवस्था के उपचार का श्रेष्ठ विकल्प है।
  1. पुरुषों को शारीरिक संबंध बनने में कोई कठिनाई नहीं होती है तथा महिला मरीज बच्चों को जन्म दे सकती है।
  2. लम्बी आयु की संभावना: किडनी प्रत्यारोपण के रोगियों में एक लम्बे जीवन की संभावना बनी रहती है (उन मरीजों की तुलना में जो डायालिसिस पर रहते हैं।
  3. शुरू के और पहले साल के उपचार के खर्च के बाद आगे के उपचार में कम खर्च होता है।
किडनी प्रत्यारोपण की हानियाँ क्या हैं?

किडनी प्रत्यारोपण से होनेवाली मुख्य हानियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. बड़े ऑपरेशन की जरूरत पडती है, परन्तु वह संपूर्ण सुरक्षित है।
  2. अस्वीकृति का खतरा- शरीर, प्रत्यारोपित किडनी को स्वीकार करेगा इसकी 100 % गांरटी नहीं होती है। लेकिन नए दोर की बेहतर प्रतिरक्षादमनकारी दवाओं की उपलब्धता के कारण अतीत की तुलना में शरीर द्वारा प्रत्यारोपित किडनी की अस्वीकृति कम हो गई है।
  3. किडनी प्रत्यारोपण में बाद नियमित दवा लेने की जरूरत पडती है। शुरू में यह दवा बहुत ही महँगी होती है। यदि दवा का सेवन थोड़े समय के लिये भी बंद हो जाए, तो प्रत्यारोपित किडनी बंद हो सकती है।
  4. यह उपचार बहुत महँगा है। ऑपरेशन और अस्पताल का खर्च, घर जाने के बाद नियमित दवा एवं बार-बार लेबोरेटरी से जाँच कराना इत्यादि खर्च बहुत महँगा हैं। इम्युनोसप्रेसिव अर्थात् प्रतिरक्षादमनकारी दवाओं से संबंधिक जोखिम - वे दवाएँ जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को रोकती है वे गंभीर संक्रमण का कारण हो सकती हैं। प्रत्यारोपण की देखभाल के अंर्तगत किसी भी प्रकार के संक्रमण और कुछ प्रकार के कैंसर से बचने के लिए नियमित स्क्रीनिंग की आवश्यकता होती है। कुछ दवाएँ जो उच्च रक्त्चाप, कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखती हैं उनका भी साइड इफेक्ट होता है।
  5. तनाव - किडनी प्रत्यारोपण से पहले किडनी दाता का इंतजार करना, प्रत्यारोपण की सफलता की अनिश्चितता (प्रत्यारोपित किडनी विफल हो सकती है) और प्रत्यारोपण के बाद नव प्रतिरोपित किडनी का काम न करने का डर, तनाव उत्पन्न करता है।
एड्स, कैन्सर जैसे गंभीर रोगों की मौजूदगी में किडनी प्रत्यारोपण नहीं किया जाता है।
ई. एस. आर. डी. के रोगी के लिए किडनी प्रत्यारोपण करने की सलाह तब नहीं दी जाती जब मरीज को
  • एक गंभीर सक्रिय संक्रमण हो
  • सक्रिय या अनुपचारित कैंसर हो
  • तीव्र मनोवैज्ञानिक समस्या या मानसिक मंदता हो
  • अस्थिर कोरोनरी धमनी की बीमारी हो
  • हृदयाधात या ह्रदय का फेल होना हो
  • तीव्र एवं गंभीर रोगों की उपस्थिति हो
  • दाता किडनी के खिलाफ एंटीबॉडी की उपस्थिति हो
किडनी प्रत्यारोपण के लिए दाता की पसंद की जाती है?

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज को किसी भी व्यक्ति की किसदनेय काम आ सके ऐसा नहीं है। सबसे पहले मरीज (जिसे किडनी की आवश्यकता है) के ब्लडग्रुप के ध्यान में रखते हुए डॉक्टर यह तय करते हैं की कौन सी व्यक्ति उसे किडनी दे सकती हैं।

किडनी देनेवाले और किडनी लेनेवाले के ब्लडग्रुप के अलावा दोनों के खून के श्वेतरक्त कणों में उपस्थित पदार्थ एच. एल. ए. (Human Leucocytes Antigen - H.L.A.) की मात्रा में भी साम्यता होनी चाहिए। एच. एल. ए. का मिलान टीस्यू टाइपिंग नाम की जाँच से किया जाता है।

कौन किडनी दे सकता है?

सामान्यः 18 से 55 साल की उम्र के दाता की किडनी ली जाती है। स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे को किडनी से सकते हैं। जुड़वा भाई/ बहन किडनीदाता में आदर्श माने जाते हैं। पर यह आसानी से नहीं मिलते हैं। माता, पिता, भाई, बहन सामान्य रूप से किडनी देने के लिए पसंद किए जाते हैं।

यदि इन किडनीदाता से किडनी नहीं मिल सके तो अन्य पारिवारिक सदस्य जैसे चाचा, बुआ, मामा, मौसी, वगैरह की किडनी ली जा सकती है। यदि यह भी संभव नहीं हो, तो पति-पत्नी की किडनी की जाँच करानी चाहिए। विकसित देशों में पारिवारिक सदस्य की किडनी नहीं मिलने पर 'ब्रेन डेथ' (दिमागी मृत्यु) हुए व्यक्ति की किडनी (केडेवर किडनी) प्रत्यारोपण की जाती है।

पेयर्ड (Paired ) किडनी दान क्या है?

मृतक दाता के किडनी प्रत्यारोपण, से जीवित दाता के किडनी प्रत्यारोपण ज्यादा फायदेमंद है। एण्ड स्टेज किडनी डिजीज या क्रोनिक किडनी डिजीज (ESKD) के मरीजों को संभावित किडनी दाता मिलते हैं। लेकिन किडनी देने वाले और लेने वाले के ब्लडग्रुप में और क्रास मैच असंगति के कारण प्रत्यारोपण संभव नहीं होता है।

पेयर्ड किडनी दान को जीवित किडनी दाता विनिमय या किडनी की अदला-बदली भी कहते हैं। यह एक रणनीति है जो एक जीविन दाता के किडनी के आदान-प्रदान की अनुमित देता है। यह दो असंगत जोड़े (दाता/प्राप्तकर्ता) के बीच दो संगत जोड़े बनाने के लिए किया जाता है। यह तब ही संभव है जब दूसरे दाता पहले प्राप्तकर्ता के लिए उपयुक्त है और पहला दाता दूसरे प्राप्तकर्ता के लिए उपयुक्त है। जैसा पहले बताया गया है की दो असंगत जोड़े के बीच दान के किडनी के आदान-प्रदान से, दो संगत प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

प्री-एमटीव किडनी प्रत्यारोपण क्या है?

किडनी प्रत्यारोपण आमतौर पर डायालिसिस चिकित्सा की कुछ अवधि के बाद होता है। डायालिसिस की शुरुआत के पहले किडनी प्रत्यारोपण किया जाता है। इसे प्री-एमटीव किडनी प्रत्यारोपण कहते हैं। एण्ड स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) के रोगी जो चिकित्सकीय रूप से उपयुक्त हैं, उनके लिए किडनी रिप्लेसमेंट थेरेपी में प्रीएम्प्टिव किडनी प्रत्यारोपण सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है। यह न केवल डायालिसिस की असुविधा, जोखिम और खर्च से बचाता है, परंतु प्रारंभिक डायालिसिस के बाद उत्तरजीविता से जुड़ा हुआ है। अगर उचित दाता मिलता है तो प्रीएम्प्टिव प्रत्यारोपण पर विचार करने की सलाह इ. स. क. डी. रोगियों के लिए दी जाती है। क्योंकि इसके अपने अनेक फायदे हैं।

सफल किडनी प्रत्यारोपण के लिए पारिवारिक सदस्यों से ली गई किडनी श्रेष्ठ होती है।

किडनीदाता को किडनी देने के बाद क्या तकलीफ होती है?

किडनी लेने से पहले, किडनीदाता का संपूर्ण शारीरिक परीक्षण किया जाता है। यह पूर्ण रूप से निश्चित किया जाता है की किडनीदाता की दोनों किडनी सामान्य रूप से कार्यरत हैं या नहीं और उसे एक किडनी देने से कोई तकलीफ तो नहीं होगी। एक किडनी देने के बाद दाता को सामान्यतः कोई तकलीफ नहीं होती है। वह अपनी जीवन क्रिया साधारण रूप से पूर्व की भांति चला सकता है। ऑपरेशन के बाद पूरी तरह आराम करने के बाद वह शारीरिक परिश्रम भी कर सकता है। उसके वैवाहिक जीवन में भी कोई तकलीफ नहीं होती है। दाता के एक किडनी देने के बाद उसकी दूसरी किडनी दोनों किडनीयों का कार्य संभाल लेती है।

किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन से पहले मरीज की जाँच:

ऑपरेशन से पहले किडनी डिजीज के मरीज की अनेक प्रकार की शारीरिक, लेबोरेटरी और रेडियोलॉजिकल जाँच की जाती है। इन परिक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है की मरीज ऑपरेशन हेतु पूर्ण रूप से तैयार है एवं किसी ऐसे रोग से ग्रस्त नहीं है जिसके कारण ऑपरेशन न हो सके।

Kidney In Hindi

किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन की जानकारी

किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन में क्या किया जाता है?

सर्जरी से पहले, किडनी प्राप्तकर्ता और किडनी दाता दोनों का चिकित्सकीय, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक मूल्यांकन किया जाता है। यह दोनों की फिटनेस और सुरक्षा सुनिश्चित के लिए किया जाता है। (यह जीवित किडनी दाता द्वारा प्रत्यारोपण में होता है) उचित ब्लड ग्रुप, के मिलान के अलावा दोनों के खून के श्वेतरक्त कणों में उपस्थित पदार्थ एच. एल. ए. (Human Leucocytes Antigen) की मात्रा में साम्यता और टिस्यु क्रास मैचिंग की जाँच से किडनी प्रत्यारोपण होने या न होने को सुनिश्चित करता है।

  • ऑपरेशन से पहले मरीज के रिश्तेदार और किडनीदाता के रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है। किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन एक टीम करती है। नेफ्रोलॉजिस्ट (किडनी फिजिशियन), यूरोलोजिस्ट (किडनी के सर्जन), पैथोलॉजिस्ट और अन्य प्रशिक्षण प्राप्त सहायकों के संयुक्त प्रयास से यह ऑपरेशन होता है। इस ऑपरेशन का काम यूरोलोजिस्ट करता है।
  • उक्त प्रक्रिया के बाद सहमिती पत्र को ध्यान से पढ़ें एवं प्राप्तकर्ता और दाता दोनों की सहमिती प्राप्त करें ( यह जीवित किडनी प्रत्यारोपण में आवश्यक है)
  • किडनीदाता और किडनी पाने वाले मरीज दोनों का ऑपरेशन एक साथ किया जाता है।
  • किडनीदाता की एक किडनी को ऑपरेशन से निकालने के बाद उसे विशेष प्रकार के ठंडे द्रव से पूरी तरह साफ किया जाता है। बाद में उसे क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज के पेट के आगेवाले भाग में दाहिनी तरफ नीचे के भाग (पेडू) में लगाया जाता है।
  • सामान्यतः मरीज की खराब हुई किडनी नहीं निकाली जाती है। परन्तु यदि खराब हुई किडनी शरीर को नुकसान पहुँचा रही हो, तो ऐसे अपवादरूप किस्से में किडनी को निकालना जरुरी होता है।
  • यह ऑपरेशन साधारणतः तीन से चार घंटों तक चलता है।
  • जब किडनी को दान करने वाला एक जीवित व्यक्ति है, तब प्रतिरोपित किडनी आमतौर पर तुरंत कार्य करना शुरू कर देती है। पर जब किडनी का स्त्रोत एक मृतक है (कैडेवर किडनी दाता) तब प्रतिरोपित किडनी को कार्य शुरू करने में कुछ दिन या हफ्ते लग सकते हैं। जिस किडनी प्राप्तकर्ता की प्रतिरोपित किडनी अपने कार्य को करने में विलम्ब करती है तब मरीज को डायालिसिस की तब तक आवश्यकता होती है जब तक किडनी कार्य पूर्ण रूप से न करने लगे।
  • प्रत्यारोपण के बाद, नेफ्रोलॉजिस्ट किडनी प्राप्तकर्ता की दवाओं की निगरानी और मरीज के स्वास्थ्य एवं किडनी की कार्यक्षमता पर कड़ी नजर रखता है। जीवितकिडनी दाता की भी नियमित रूप से स्वास्थ्य संबंधित जाँच और निगरानी रखनी चाहिए।
किडनी प्रत्यारोपण में पुरानी किडनी को यथावत स्थिति में रखते हुए नई किडनी को पेट के आगे वाले नीचे भाग में रखा जाता है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद जानने योग्य सूचनाएँ

किडनी प्रत्यारोपण के बाद जानने योग्य सूचनाएँ

संभवित खतरे :

किडनी प्रत्यारोपण के बाद संभवित प्रमुख खतरे नई किडनी का शरीर द्वारा अस्वीकार होना (किडनी रिजेक्शन), संक्रमण होना, ऑपरेशन संबंधित खतरो का भय होना और दवा का उल्टा असर होना है।

दवा द्वारा उपचार और किडनी रिजेक्शन (अस्वीकार) किडनी प्रत्यारोपण अन्य ऑपरेशनों से किस प्रकार भिन्न है?

सामान्य तौर पर मरीज को अन्य ऑपरेशन करने के बाद सिर्फ सात से दस दिनों तक निधार्रित दवाइँ लेनी पड़ती है। परन्तु किडनी प्रत्यारोपण के ऑपरेशन के बाद किडनी रिजेक्शन रोकने के लिए हमेशा के लिए आजीवन दवाई लेनी जरुरी होती है।

किडनी रिजेक्शन क्या है?

हम जानते है की संक्रमण के समय शरीर के श्वेतकणों में रोगप्रतिरोधी पदार्थ (एन्टिबॉडीस) बनते है। ये एन्टिबॉडीस जीवाणु से संघर्ष करके उसे नष्ट कर देते है। इसी प्रकार नई लगाई गई किडनी बाहर की होने के कारण मरीज के श्वेतकणों में बने एन्टिबॉडीस इस प्रकार किडनी को नुकसान पहुँचा सकते है । इस प्रकार नुकसान की मात्रा के अनुसार नई किडनी खराब होती है। इसे ही मेडिकल की भाषा में किडनी रिजेक्शन कहते है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद के मुख्य खतरों में किडनी रिजेक्शन, संक्रमण और दवा का उल्टा असर है।

किडनी रिजेक्शन कब होता है उसका क्या असर पड़ता है?

किडनी की अस्वीकृति, प्रत्यारोपण के बाद किसी भी समय हो सकती है। प्रायः यह पहले छः माह में होती है। अस्वीकृति की गंभीरता हर रोगी में अलग होती है। प्रायः किडनी की अस्वीकृति होना किसी विशेष कारण से नहीं होता है और इसका इलाज उचित इम्युनोसप्रेसेन्ट चिकित्सा द्वारा हो जाता है। पर कुछ रोगियों में किडनी की अस्वीकृति होना गंभीर हो सकता है और जो अंत में किडनी को नष्ट कर सकता है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद रिजेक्शन की संभावना को कम करने के लिए किस प्रकार की दवाइँ उपयोगी होती है?

  • शरीर की प्रतिरोधकशक्ति के कारण नई लगाई गई किडनी के अस्वीकार (रिजेक्शन) होने की संभावना रहती है।
  • अगर दवा सेवन से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम किया हाता है, तो रिजेक्शन का भय नहीं रहता है, परन्तु मरीज को जानलेवा संक्रमण का भय बना रहता है।
  • किडनी प्रत्यारोपण के बाद विशेष प्रकार की दवाइँ का इस्तेमाल होता है, जो किडनी रिजेक्शन को रोकने का मुख्य काम करती है एवं मरीज की रोग से लड़ने की क्षमता बनाए रखती है (Selective Immuno Suppression)।
  • इस प्रकार की दवा को इम्यूनोसप्रेसेन्ट (Immunosuppresant) कहा जाता है। प्रेडनिसोलोन, एजाथायोप्रीन, सायक्लोस्प्रोरिन, एम. एम. एफ. और टेक्रोलिमस इस प्रकार की मुख्य दवाईयाँ हैं।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवा कब तक लेनी जरुरी होती है?

बहुत ही महँगी यह दवाईयाँ किडनी प्रत्यारोपण के बाद मरीज को सदा के लिए-आजीवन लेनी पडती है। शुरू में दवाइँ की मात्रा (और खर्च भी) ज्यादा लगती है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद अन्य कोई दवा लेने की जरूरत पडती है?

हाँ, जरूरत के अनुसार किडनी प्रत्यारोपण करने के बाद मरीजों द्वारा ली जानेवाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्शियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ हैं। अन्य कोई बीमारी के लिए यदि दवा की जरूरत पड़े, तो नये डॉक्टर से दवा लेने से पहले उसे यह बताना जरुरी होता है की मरीज का किडनी प्रत्यारोपण हुआ है और हाल में वह कौन कौन सी दवाइँ ले रहा है।

रिजेक्शन रोकने के लिए किडनी प्रत्यारोपण कराने के बाद आजीवन दवा लेना आवश्यक है।

क्या होता है अगर प्रत्यारोपित किडनी काम करना बंद कर दे ?

जब प्रत्यारोपित किडनी काम करना बंद कर देती तब मरीज को दूसरा प्रत्यारोपण या डायालिसिस करवाना पड़ता है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद की जरुरी सूचनाएँ

नई किडनी की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएँ:

सफल किडनी प्रत्यारोपण मरीज को एक नया, सामान्य, स्वस्थ और स्वतंत्र जीवन प्रदान करती है। किडनी प्राप्तकर्ता को प्रतिरोपित किडनी की रक्षा के लिए एक अनुशासित जीवन शैली व्यतीत करना चाहिए और संक्रमण रोकने की सावधानियों का पालन करना चाहिए। रोगी को नियमित रूप से निर्धारित दवाओं को लेना अती आवश्यक है।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद किडनी पाने वाले को दी जानेवाली महत्वपूर्ण सूचनाएँ निम्नलिखित हैं:

  • डॉक्टर की सूचना अनुसार नियमित ढंग से दवा लेनी अत्यंत जरुरी है। यदि दवा अनियमित रूप से ली जाए, तो नई किडनी के खराब होने का खतरा रहता है।
  • हमेशा दवाओं की एक सूचि तैयार रखें और पर्याप्त स्टॉक बनाए रखें। कभी भी ओवर डी काऊंटर दवाएँ और हर्बल उपचार न करें।
  • प्रारंभ में मरीज का ब्लडप्रेशर, पेशाब की मात्रा और शरीर के वजन को नियमित रूप से नापकर एक डायरी में लिखना जरुरी होता है।
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित रूप से लेबोरेटरी में जाकर जाँच करानी चाहिए और फिर नेफ्रोलॉजिस्ट से नियमित चेकअप कराना जरुरी है।
  • खून और पेशाब की जाँच विश्वासपात्र लेबोरेटरी में ही करानी चाहिए। रिपोर्ट में यदि कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई दे तो लेबोरेटरी बदलने के बजाय नेफ्रोलॉजिस्ट को तुरंत सूचित करना आवश्यक है।
  • बुखार आना, पेट में दर्द होना, पेशाब कम आना, अचानक शरीर के वजन में वृध्दि होना या कोई अन्य तकलीफ हो रही हो, तो तुरंत नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करना जरूरी है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद सफलता के लिए सावधानी और नियमितता अत्यंत आवश्यक है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण से बचने के लिए सूचनाएँ:
  • प्रत्यारोपण के बाद आहार पर कम प्रतिबंध रहते हैं। भोजन समय पर करें। एक संतुलित आहार जिसमें पर्याप्त कैलोरी, प्रोटीन हो वह लेना चाहिए। भोजन जिसमें नमक, शक्कर और वसा की मात्रा कम हो, परन्तु पर्याप्त मात्रा में फाइबर हो जिससे वजन न बढ़े ऐसा आहार लेना चाहिए। निर्जलीकरण से बचने के लिए पानी की मात्रा भी पर्याप्त लेनी चाहिए। रोगी को दिन में तीन लीटर पानी या ज्यादा की आवश्यकता होती है।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें और वजन पर नियंत्रण रखें। भारी शारीरक गतिविधियों और निकट संपर्क के खेलों से बचें। उदाः फुटबॉल, मुक्केबाजी आदि।
  • चिकित्सक की सलाह से प्रत्यारोपण के दो माह के पश्चात् सुरक्षित यौन गतिविधियों को फिर से शुरू किया जा सकता है।
  • धूम्रपान एवं शराब सेवन से बचें।
  • शुरू-शुरू में संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ, जीवाणुरहित मास्क पहनना जरुरी है, जिसे रोज बदलना चाहिए।
  • रोज साफ पानी से नहाने के बाद धुप में सुखाएं एवं प्रेस किये कपड़े पहनने चाहिए।
  • घर को पूरी तरह से स्वच्छ रखना चाहिए।
  • बीमार व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। प्रदूषणवाली, भीड़-भाड़वाली जगह जैसे मेला वगैरह में जाने से बचना चाहिए।
  • हमेंशा उबला हुआ पानी ठंडा कर और छानकर पीना चाहिए।
  • खाने के पहले, दवाई लेने के पहले और बाथरूम के इस्तेमाल करने के बाद रोगी को अपने हाथ साबुन और पानी से अवश्य धोने चाहिए।
  • बाहर का बना भोजन नहीं खाना चाहिए। घर में ताजा बना भोजन साफ बरतनों में लेकर खाना चाहिए।
  • खाने पीने संबंधित सभी हिदायतों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।
  • दांतों को दिन में दो बार साफ करे और दांतों की अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए। किसी भी खरोंच, चोट, घाव या छिलने की उपेक्षा न करें। तुरंत घाव को साफ पानी व् साबुन से साफ कर मलहम पट्टी करें।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण से बचने के लिए संभव हर सावधानी रखना जरुरी है।
डॉक्टर से परामर्श लें या प्रत्यारोपण क्लिनिक में जायें अगर -
  • बुखार 100 F या 37.8 C से ऊपर है, ठंड लगना, शरीर में दर्द या लगातार सिरदर्द होना।
  • पेशाब में खून जाना या पेशाब करते समय जलन महसूस होना।
  • किसी भी प्रकार के नए या असामान्य लक्षण का दिखना।
  • पेशाब उत्पादन में महत्वपूर्ण कमी, शरीर में सूजन या तेजी से वजन बढ़ना (एक दिन में 1 Kg तक बढ़ना) किडनी की रक्षा के लिए तुरंत किसी भी नई या असामान्य समस्या का इलाज कराना अनिवार्य है।
किडनी प्रत्यारोपण का अल्प उपयोग: क्रोनिक किडनी डिजीज के सभी मरीज किस कारण से किडनी प्रत्यारोपण नहीं करा सकते हैं?

किडनी प्रत्यारोपण एक उमदा, कारगर और उपयोगी उपचार है। फिर भी बहुत से मरीज यह उपचार का फायदा नहीं ले पाते हैं। इसके तीन मुख्य कारण हैं:

1. किडनी उपलब्ध न होना:
किडनी प्रत्यारोपण के इच्छुक मरीजों को पारिवारिक सदस्यों से योग्य किडनी या केडेवर किडनी का न मिलना। यह किडनी प्रत्यारोपण के अल्प उपयोग का प्रमुख कारण है।

2. महँगा उपचार:
वर्तमान समय में, किडनी प्रत्यारोपण का कुल खर्च जिसमें ऑपरेशन, जाँच, दवाइँ और अस्पताल का खर्च शामिल है, वह बहुत ही महँगा होता है। अस्पताल से घर जाने के पश्चात् दवाईयाँ और जाँच कराने का खर्च भी काफी ज्यादा लगता है।

पहले साल के बाद इस खर्च में कमी आने लगती है। फिर भी दवाईयों का सेवन जिन्दगी भर करना जरुरी होता है। इस तरह किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन और उसके बाद दवाईयों का खर्चा हृदय रोग के लिए की जानेवाली बाईपास सर्जरी से भी महँगा है। इतने खर्च की वजह से कई मरीज किडनी प्रत्यारोपण नहीं करवा सकते हैं।

3. सुविधाओं की कमी:
कई विकासशील देशों में, किडनी प्रत्यारोपण के लिए सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है।

किडनी प्रत्यारोपण के अल्प उपयोग की मुख्य वजह किडनी उपलब्ध न होना और ज्यादा खर्च है।

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण (Cadaver Kidney Transplantation)

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण क्या है?

ब्रेन डेथ - दिमागी मृत्यु (Brain Death) वाले व्यक्ति के शरीर से स्वस्थ किडनी निकालकर, किडनी डिजीज के मरीज में लगाये जाने वाले ऑपरेशन को केडेवर किडनी प्रत्यारोपण कहते हैं।

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण क्यों जरूरी है?

किसी व्यक्ति की दोनों किडनी फेल हो जाने पर उपचार के सिर्फ दो ही विकल्प हैं - डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण।

सफल किडनी प्रत्यारोपण से मरीज को कम परहेज एवं पाबंदी और आम व्यक्ति की तरह जीने की सहूलियत मिलती है। इससे किडनी डिजीज के मरीजों को बेहतर जीवनशैली मिलती है। इसी कारण किडनी प्रत्यारोपण, डायालिसिस से ज्यादा अच्छा उपचार का विकल्प है।

किडनी प्रत्यारोपण कराने के लिए इच्छुक सभी मरीजों को अपने परिवार से किडनी नहीं मिल सकती है। इसी कारण डायालिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या बहुत बड़ी है। ऐसे मरीजों के लिए केडेवर किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र आशा है। मृत्यु के पश्चात् शरीर के साथ किडनी भी नष्ट हो जाती है। अगर ऐसी किडनी की मदद से किसी क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज को नयी जिन्दगी मिल सकती है, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है?

ब्रेन डेथ - दिमागी मृत्यु (Brain Death) क्या है?

सरल भाषा में मृत्यु का मतलब ह्रदय, श्वास और दिमाग का हमेंशा के लिए बंद हो जाना है। ब्रेन डेथ- यह डॉक्टरों द्वारा किया जानेवाला निदान है। 'ब्रेन डेथ' के मरीज में गंभीर नुकसान के कारण दिमाग संपूर्ण रूप से हमेंशा के लिए कार्य करना बंद कर देता है। इस प्रकार के मरीजों में किसी भी प्रकार के इलाज से मरीज की बेहोशी की अवस्था में सुधार नहीं होता है, परन्तु वेन्टीलेटर और सघन उपचार की सहायता से साँस और हृदयगति चालू रहती है और खून पुरे शरीर में आवश्यक मात्रा में पहुँचता रहता है। इस प्रकार की मृत्यु को 'ब्रेन डेथ' (दिमागी मृत्यु) कहा जाता है।

किडनी प्रत्यारोपण के लिए पारिवारिक किडनी न मिलने पर एकमात्र आशा की किरण केडेवर किडनी प्रत्यारोपण है।
ब्रेन डेथ निदान के लिए मानदंड

जब पर्याप्त समय तक मरीज कोमा की अवस्था में हों, और कोमा का कारण (सिर में चोट, मस्तिष्क में रक्त स्त्राव आदि) प्रयोग शाला परीक्षण, नैदानिक परीक्षा, न्यूरोइमेजिंग आदि द्वारा किया गया है।

कुछ दवाओं (जैसे नींद एवं मिरगी की दवाएँ, अवसाद दूर करने की दवाएँ, नारकोटिक्स आदि) एवं मेटाबालिक और एंडोक्राइन कारणों से भी मस्तिष्क बेहोशी की हालत में जा सकता है। जिसमें ब्रेन डेथ जैसा दिखाई पड़ सकता है।

ब्रेन डेथ के निदान की पुष्टि करने के पहले इस तरह के कारणों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। चिकित्सक को ब्रेन डेथ (दिमागी मृत्यु) के निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले रक्तचाप में कमी, शरीर के दिमागी मृत्यु की पुष्टि हो जाती है यदि

  • विशेषज्ञों की देखरेख में उचित उपचार के बावजूद लगातार एक पर्याप्त अवधि तक गहरे कोमा में रहना और स्वास्थ्य होने की संभावना का खत्म हो जाना।
  • मरीज का वेन्टीलेटर पर रहना और अवभाविक साँस न ले पाना।
  • श्वसन, रक्तचाप और रक्त संचालन को वेन्टीलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों के साथ ही लम्बी अवधि तक बनाए रखना।
'ब्रेन डेथ' और बेहोश होने में क्या अंतर है?

बेहोश हुए मरीज के दिमाग को हुए नुकसान को सही उपचार से पुनः सुधारा जा सकता है। इस प्रकार के रोगियों में सामान्य या सघन उपचार से हृदयगति और श्वसन चालू रहते हैं और दिमाग के अन्य कार्य यथावत रहते हैं। इस प्रकार के रोगी उचित उपचार से पुनः होश में आ जाते हैं।

जबकि ब्रेन डेथ में दिमाग को इस प्रकार का गंभीर नुकसान होता है, जिसे ठीक न किया जा सके। इस प्रकार रोगियों में वेन्टीलेटर के बंद करने के साथ ही साँस और हृदयगति रुक जाती है तथा मरीज की मृत्यु हो जाती है।

ब्रेन डेथ के बाद किसी भी मरीज में दिमागी सुधार की कोई संभावना नहीं रहती है।
क्या कोई भी व्यक्ति मृत्यु के बाद किडनी दान कर सकता है?

नहीं, मृत्यु के बाद चक्षुदान जैसे किडनी दान नहीं किया जा सकता है। हृदयगति बंद होते ही, किडनी में खून पहुँचना बंद हो जाता है तथा किडनी काम करना बंद कर देती है। इसलिए सामान्य तौर पर मृत्यु के बाद किडनी का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

'ब्रेन डेथ' होने के मुख्य कारण क्या हैं?

आमतौर पर निम्लिखित कारणों से 'ब्रेन डेथ' होता है:

  • दुर्घटना में सर में घातक चोट लगना।
  • खून का दबाव बढ़ने अथवा धमनी फट जाने से ब्रेन हेमरेज (दिमागी रक्तस्राव) का होना।
  • दिमाग में खून पहुँचानेवाली नली में खून का जम जाना, जिससे दिमाग में खून का पहुँचना बंद होना(Brain Infarct)।
  • दिमाग में कैंसर की गाँठ का होना, जिससे दिमाग को गंभीर नुकसान होता है।
'ब्रेन डेथ' का निदान कब, कौन और किस प्रकार से होता है?
  • जब पर्याप्त समय तक विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा सघन उपचार करने के बावजूद मरीज का दिमाग जरा भी कार्य न करें और पूर्णरूप से बेहोश मरीज का वेन्टीलेटर द्वारा उपचार चालू रहे, तो मरीज की ब्रेन डेथ होने की जाँच की जाती है।
  • किडनी प्रत्यारोपण के डॉक्टर्स की टीम से पूर्णतः अलग डॉक्टरों की टीम द्वारा ब्रेन डेथ का निदान किया जाता है। इन डॉक्टरों की टीम में मरीज का उपचार करनेवाले फिजिशियन, न्यूरो फिजिशियन, न्यूरोसर्जन इत्यादि होते हैं।
  • जरुरी डॉक्टरी जाँच, बहुत से लेबोरेटरी जाँच की रिपार्ट, दिमाग की खास जाँच ई. ई. जी. तथा अन्य जरुरी परीक्षण की मदद से मरीज के दिमाग की सुधार की प्रत्येक संभावना को परखा जाता है। सभी जरुरी जाँचों के बाद जब डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं की मरीज का दिमाग पुनः कार्य कभी भी नहीं कर सकेगा तब ही दिमाग मृत्यु का निदान कर उसकी घोषणा कर दी जाती है।
सरल भाषा में ब्रेन डेथ का मतलब वेन्टीलेटर के मदद से मृतशरीर से साँस, हृदय और खून का परवाह जारी रखना है।
केडेवर किडनी देनेवाले को कौन सी बीमारियाँ होने पर केडेवर किडनी नहीं ली जा सकती है?
  • यदि संभावित किडनी दाता के खून में संक्रमण का असर हो।
  • कैंसर की बीमारी हो (दिमाग के अलावा)।
  • किडनी कार्यरत नहीं हो अथवा काफी समय से किडनी कम काम नहीं कर रही हो, किडनी में कोई गंभीर बीमारी हो।
  • खून की रिपोर्ट में यदि एड्स अथवा पीलिया (Jaundice) के निदान होने की पुष्टि हो।
  • मरीज लम्बे समय से डायाबिटीज या खून के अधिक दबाव का रोगी हो।
  • उम्र 10 साल से कम या 70 साल से ज्यादा हो। ऐसी स्थिति में किडनी नहीं ली जा सकती है।
केडेवरदाता किन-किन अंगों को दान में देकर अन्य मरीजों को मदद के सकते है?
  • केडेवर दाता की दोनों किडनी दान में ली जा सकती है, जिससे किडनी फेल्योर को दो मरीजों को नया जीवन ली सकता है।
  • किडनी के अतिरिक्त केडेवर दाता द्वारा दान में अन्य अंग जैसे- हृदय, लिवर, पैन्क्रियाज, आँखें इत्यादि भी दिये जा सकते हैं।
केडेवर किडनी प्रत्यारोपण के कार्य में किन-किन व्यक्तियों का समावेश होता है?

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण की सफलता के लिए टीम वर्क की जरूरत पडती है, जिसमें

  • केडेवर किडनी दान में देने के लिए मंजूरी देनेवाला किडनी दाता के परिवारिक सदस्य,
  • मरीजों का उपचार करनेवाले फिजिशियन,
  • केडेवर प्रत्यारोपण के विषय में प्रेरणा और जानकारी देनेवाला प्रत्यारोपण समन्वयक (Transplantation Co-ordinator),
  • ब्रेन डेथ का निदान करनेवाले न्यूरोलॉजिस्ट, किडनी प्रत्यारोपण करनेवाले नेफ्रोलॉजिस्ट और यूरोलॉजिस्ट इत्यादि लोग शामिल होते हैं।
एक केडेवर से मिली दो किडनी का दान दो मरीजों को जीवन दे सकता है।
केडेवर प्रत्यारोपण किस प्रकार से किया जाता है?

केडेवर प्रत्यारोपण करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारियाँ इस प्रकार हैं:

  • ब्रेन डेथ की उचित निदान होना चाहिए।
  • किडनीदाता की लेबोरेटरी जाँच और उसकी किडनी पूर्णतः स्वस्थ है, इसकी सही तरीके से पुष्टि कर लेनी चाहिए।
  • किडनीदान के लिए किडनीदाता के पारिवारिक सदस्यों की मंजूरी लेनी चाहिए।
  • किडनीदाता के शरीर से किडनी बाहर निकालने के ऑपरेशन समाप्त होने तक मरीज का (वेन्टीलेटर और अन्य उपचारों की मदद से) हृदय एवं साँस को चालू रखा जाता है और खुन के दबाव को उचित मात्रा में रखा जाता है।
  • किडनी शरीर से बाहर निकालने के बाद उसे खास प्राकर के ठंडे द्रव से अंदर से साफ और स्वस्छ किया जाता है और किडनी को बर्फ में उचित तरीके से रखा जाता है।
  • किडनीदाता का ब्लडग्रूप और टिस्युटाइपिंग की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए यह तय करना जरुरी होता है की केडेवर प्रत्यारोपण के इच्छुक किस मरीज के लिए यह केडेवर किडनी अधिक उपयुक्त होगी।
  • सभी प्रकार की जाँच तथा उचित तैयारी के बाद, किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन जितना जल्दी हो सके उतना ही फायदेमन्द होता है।
  • ऑपरेशन द्वारा निकाली गई केडेवर किडनी या पारिवारिक सदस्य से मिली किडनी दोनों स्थितियों में किडनी लगाने की प्रक्रिया एक सामान होती है।
  • एक दाता के शरीर में से दो किडनी मिलती हैं, जिससे एक साथ दो मरीजों का केडेवर किडनी प्रत्यारोपण किया जाता है।
  • किडनी निकालने और प्रत्यारोपण के बीच की समय अवधि के दौरान दाता किडनी को आक्सीजन की कमी, रक्त की आपूर्ति न होने और बर्फ के भंडारण में ठंड लगने से किडनी को कुछ क्षति हो सकती है। कई बार इस तरह की क्षति के कारण किडनी प्रत्यारोपण के तुरंत बाद काम करने में सक्षम नहीं हो पाती है। ऐसी परिस्थिति में अल्प समय के लिए डायालिसिस की सहायता लेनी पड़ सकती है। जब दाता किडनी पुनः स्वस्थ्य होकर अपना कार्य शुरू कर दे तब डायालिसिस बंद किया जा सकता है।
  • इस प्रकार किडनी को हुए नुकसान के कारण केडेवर किडनी प्रत्यारोपण होने बाद कई मरीज में नई किडनी को कार्यरत होने में थोड़ा समय लगता है और ऐसी स्थिति में मरीज को डायालिसिस की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
मृत्यु के बाद शरीर के अंगों का दान दूसरे व्यक्ति को नया जीवन देने जैसा पुण्य का कार्य दूसरा कोई नहीं है।
केडेवर किडनी का दान देनेवालों को क्या लाभ होता है?

केडेवर किडनीदाता को अथवा उसके पारिवारिक सदस्यों को किसी प्रकार की धनराशि नहीं मिलती है। इस प्रकार किडनी लेनेवाले मरीज को कोई कीमत नहीं चुकानी पडती है। परन्तु, मृत्यु के बाद किडनी नष्ट हो जाए, इससे तो अच्छा जरूरतमंद मरीज को किडनी मिलने से नया जीवन मिले, जो अमूल्य है। इस दान से एक पीड़ित और दुःखी मरीज की मदद करने में संतोष और खुशी मिलती हैं, जिसकी कीमत किसी आर्थिक लाभ से कहीं अधिक है।

इस प्रकार कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद बिना कुछ गंवाये दूसरे मरीज को नया जीवन दे सकता है, इससे बड़ा लाभ क्या हो सकता है।

केडेवर किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा कहाँ कहाँ उपलब्ध है?

राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा अनुमति दिए गए अस्पतालों में ही केडेवर किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा हो सकती है। भारत में कई बड़े शहरों जैसे मुम्बई, चेन्नई, अहमदाबाद, बैंगलोर, हैदराबाद इत्यादि में यह सुविधा उपलब्ध है।