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Table of Content
प्रस्तावना और विषय
आधारभूत जानकारी
किडनी फेल्योर
किडनी के अन्य मुख्य रोग
बच्चो में किडनी के रोग
किडनी और आहार

किडनी की सुरक्षा के उपाय

सामान्य व्यक्ति के लिए सूचनाएं

किडनी के कई रोग बहुत गंभीर होते हैं और यदि इनका समय पर इलाज नहीं किया गया, तो उपचार असरकारक नहीं होता है। विकासशील देशों में उच्च लगत, संभावित समस्याओं और उपलब्धता की कमी के कारण किडनी फेल्योर से पीड़ित सिर्फ 5-10% मरीज ही डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण का उपचार करवा पाते है। बाकि मरीज सामान्य उपचार पर बाध्य होते हैं जिससे उन्हें अल्पावधि में ही विषमताओं का सामना करना पड़ता है। क्रोनिक किडनी फेल्योर जैसे रोग जो ठीक नहीं हो सकते हैं, उनका अंतिम चरण के उपचार जैसे - डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण बहुत महँगे हैं। यह सुविधा हर जगह उपलब्ध भी नहीं होती है। इसलिए कहावत ‘Prevention is better than cure’ का अनुसरण बहुत जरूरी है। किडनी खराब होने से बचने की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए।

किडनी की बीमारी को कैसे रोकें?

अपने किडनी को कभी अनदेखा न करें। इसके निम्नलिखित दो भाग हैं:

1. सामान्य व्यक्ति के लिए सूचनाएं

2. किडनी रोगों की देखभाल के लिए सावधानियाँ

सामान्य व्यक्ति के लिए सूचनाएं

किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सात प्रभावी तरीके:

1. फिट और सक्रिय रहे

नियमित रूप से एरोबिक व्यायाम और दैनिक शरीरिक गतिविधियाँ, रक्तचाप को सामान्य रखने में और रक्त शर्करा को नियंत्रण करने में मदद करती हैं। इस तरह शरीरिक गतिविधियाँ, मधुमेह और उच्च रक्तचाप के खतरे को कम कर देती है और इस प्रकार सी. के. डी. के जोखिम को कम किया जा सकता है।

2. संतुलित आहार

ताजे फल और सब्जियों युक्त आहार लें। आहार में परिष्कृत खाघ पदार्थ, चीनी, वसा और मांस का सेवन घटाना चाहिए। वे लोग जिनकी उम्र 40 के ऊपर है, भोजन में कम नमक लें जिससे उच्च रक्तचाप और किडनी की पथरी के रोकथाम में मदद मिले।

3. वजन नियंत्रण रखें

स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम के साथ अपने वजन का संतुलन बनाए रखें। यह मधुमेह, ह्रदय रोग और सी.के.डी. के साथ जुड़ी अन्य बीमारियों को रोकने में सहायक होता है।

4. धूम्रपान और तंबाकू के उत्पादों का सेवन ना करे

धूम्रपान करने से एथीरोस्क्लेरोसिस होने की संभावना हो सकती है। यह किडनी में रक्त प्रवाह को कम कर देता है। जिससे किडनी की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। अध्ययनों से यह भी पता चला हैं की धूम्रपान के कारण उन लोगों में जिनके अंतर्निहित किडनी की बीमारी है या होने वाली है, उनके किडनी की कार्यक्षमता में गिरावट तेजी से आती है।

5. ओ.टी.सी. दवाओं से सावधान (ओवर द काऊंटर)

लम्बे समय तक दर्द निवारक दवाई लेने से किडनी को नुकसान होने का भी भय रहता है। सामान्यतः ली जाने वाली दवाओं में दवाई जैसे आईब्यूप्रोफेन, डायक्लोफेनिक, नेपरोसिन, आदि किडनी को क्षति पहुँचाते हैं जिससे अंत में किडनी फेल्योर हो सकता है। अपने दर्द को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लें और अपनी किडनी को किसी भी प्रकार से खतरे में न डालें।

6. खूब पानी पीएँ

रोज 3 लीटर से अधिक (10-12 गिलास) पानी पीएँ। पर्याप्त पानी पीने से, पेशाब पतला होता है एवं शरीर से कभी विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों को निकलने और किडनी की पथरी को बनने से रोकने में सहायता मिलती है।

7. किडनी का वार्षिक चेक-अप

किडनी की बीमारियाँ अक्सर छुपी हुई एवं गंभीर होती है। अंतिम चरण पहुँचने तक इनमें किसी भी प्रकार का लक्षण नहीं दिखता है। किडनी की बीमारियों को रोकथाम और शीघ्र निदान के लिए सबसे शक्तिशाली पर प्रभावी उपाय है नियमित रूप से किडनी का चेक -अप कराना। पर अफ़सोस है की इस विधि का उपयोग ज्यादा नहीं होता है। किडनी का वार्षिक चेक -अप कराना, उच्च जोखिम वाले व्यक्ति के लिए बहुत जरुरी है, जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापे से ग्रस्त हैं और जिनके परिवार में किडनी की बीमारियों का इतिहास है। अगर आप अपनी किडनी से प्रेम करते हैं और अधिक महत्वपूर्ण है, तो 40 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से अपने किडनी की जाँच करवाना मत भूलिये। किडनी की बीमारी और उसके निदान के लिए सबसे सरल विधि है की साल में एक बार रक्तचाप का माप लेना, खून में क्रीएटिनिन को मापना और पेशाब परीक्षण करवाना।

किडनी रोगों की देखभाल के लिए सावधानियाँ

किडनी रोगों के होने पर सावधानियाँ

1. किडनी रोगो की जानकारी तथा प्रारंभिक निदान :
सतर्क रहें और किडनी की बीमारी के लक्षणों को अनदेखा न करें। चेहरे और पैरों में सूजन आना, खाने में अरुचि होना, उल्टी या उबकाई आना, खून में फीकापन होना, लम्बे समय से थकावट का एहसास होना, रात में कई बार पेशाब करने जाना, पेशाब में तकलीफ होना जैसे लक्षण किडनी रोगो की निशानी हो सकती हैं।

ऐसी तकलीफ से पीड़ित व्यक्ति को तुरंत जाँच के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए। उपरोक्त लक्षणों की अनुपस्थिति में अगर पेशाब में प्रोटीन जाता हो या खून में क्रीएटिनिन की मात्रा में वृध्दि हो, तो यह भी किडनी रोग होने का संकेत है। किडनी के रोग का प्रारंभिक अवस्था में निदान रोग के रोकथाम, नियंत्रण करने एवं ठीक करने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

2. डायाबिटीज के मरीजों के लिए जरुरी सावधानी:
किडनी की बीमारी की रोकथाम सभी मधुमेह के रोगियों के लिए विशेष रूप से आवश्यक है। क्योकि दुनिया भर में सी. के. डी. और किडनी की विफलता का प्रमुख कारण मधुमेह है। डायालिसिस में आनेवाले क्रोनिक किडनी डिजीज के हर तीन मरीज में से एक मरीज किडनी फेल होने का कारण डायाबिटीज होता है। इस गंभीर समस्या को रोकने के लिए डायाबिटीज के मरीजों को हमेंशा दवाई एवं परहेज से डायाबिटीज नियंत्रण में रखना चाहिए।

प्रत्येक मरीज को किडनी पर डायाबिटीज के असर की जल्द जानकारी के लिए हर तीन महीने में खून का दबाव एवं पेशाब में प्रोटीन की जाँच कराना जरुरी है। खून का दबाव बढ़ना, पेशाब में प्रोटीन का आना, शरीर में सूजन आना, खून में बार - बार शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा कम होना तथा डायाबिटीज के लिए इंसुलिन इंजेक्शन की मात्रा में कमी होना आदि डायाबिटीज के कारण किडनी खराब होने के संकेत होते है। किडनी की कार्यक्षमता का आंकलन करने के लिए हर साल कम से कम एक बार सीरम क्रीएटिनिन और eGFR का माप करवाना चाहिए। यदि मरीज को डायाबिटीज के कारण आँखो में तकलीफ की वजह से लेसर का उपचार कराना पड़े, तो ऐसे मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। ऐसे मरीजों को किडनी की नियमित रूप से जाँच कराना अत्यंत जरूरी है। किडनी को खराब होने से बचाने के लिए डायाबिटीज के कारण किडनी पर असर का प्रारंभिक निदान जरूरी है। इसके लिए पेशाब में माइक्रोएल्ब्युमिनयूरिया की जाँच एकमात्र एवं सर्वश्रष्ठ जाँच है।

सी. के. डी. को रोकने के लिए सभी मधुमेह रोगियों को खून और पेशाब में सावधानी से शक्कर की मात्रा नियंत्रित रखना चाहिए। जिसके लिए यदि आवश्यक हो तो डॉक्टर से परामर्श कर उचित दवाएँ लेना चाहिए। रक्तचाप को 130/80 mmHg से कम बनाए रखना चाहिए। इसके अलावा अपने आहार में प्रोटीन की मात्रा कम करें और वजन को नियंत्रण में रखें ।

3. उच्च रक्तचाप वाले मरीजों के लिए आवश्यक सावधानियाँ

उच्च रक्तचाप क्रोनिक किडनी फेल्योर का एक महत्वपूर्ण कारण है। अधिकांश मरीजों में उच्च रक्तचाप के कोई लक्षण नहीं होने के कारण कई मरीज ब्लडप्रेशर की दवा अनियमित रूप से लेते हैं या बंद कर देते हैं। ऐसे मरीजों में लंबे समय तक खून का दबाव ऊँचा बने रहने के कारण किडनी खराब होने की आशंका रहती है। कुछ मरीज इलाज अधूरा छोड़े देते हैं क्योकि वे दवा के बिना अधिक सहज महसूस करते हैं, पर यह खतरनाक है। लंबे समय तक अनियंत्रित उच्च रक्तचाप, गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकता है, जैसे - सी. के. डी., दिल का दौरा और स्ट्रोक।

किडनी के रोगों को रोकने के लिए सभी उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मरीजों को नियमित रूप से रक्तचाप की निर्धारित दवा लेनी चाहिए, नियमित रूप से रक्तचाप की जाँच करवानी चाहिए एवं उचित मात्रा में नमक लेना चाहिए। चिकित्सा का लक्ष्य है की रक्तचाप, 130/80 mmHg के बराबर या उससे कम रहे। इसलिए उच्च रक्तचाप वाले मरीजों को खून का दबाव नियंत्रण में रखना चाहिए और किडनी पर इसके प्रभाव के शीघ्र निदान के लिए साल में एक बार पेशाब की और खून में क्रीएटिनिन की जाँच करने की सलाह दी जाती है।

4. क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों के लिए आवश्यक सावधानियाँ

सी. के. डी. एक बीमारी है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज अगर सख्ती से खाने में परहेज, नियमित जाँच एवं दवा का सेवन करें तो किडनी ख़राब होने की प्रक्रिया को धीमी कर सकते हैं तथा डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत को लम्बे समय तक टाल सकते है। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों में किडनी को नुकसान होने से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपचार उच्च रक्तचाप पर हमेंशा के लिए उचित नियंत्रण रखना जरुरी है। इसके लिए मरीज को घर पर दिन में दो से तीन बार बी. पी. नापकर चार्ट बनाना चाहिए

ताकि डॉक्टर इसे ध्यान में रखते हुए दवाइयों में परिवर्तन कर सके। खून का दबाव 140/84 से नीचे होना लाभ दायक और आवश्यक है।

क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीजों में मूत्रमार्ग में रूकावट, पथरी, पेशाब की परेशानी या अन्य संक्रमण, शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाना (dehydration) इत्यादि का तुरंत उचित उपचार कराने से किडनी की कार्यक्षमता को लम्बे समय तक यथावत रखने में सहायता मिलती है।

5. वंशानुगत रोग पी. के. डी. का शीघ्र निदान और उपचार

पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (पी. के. डी.) एक वंशानुगत रोग है। इसलिए परिवार के किसी एक सदस्य में इस रोग के निदान होने पर डॉक्टर की सलाह के अनुसार परिवार के अन्य व्यक्तियों को यह बीमारी तो नहीं है, इसका निदान करा लेना आवश्यक है। यह रोग माता या पिता से विरासत के रूप में 50 प्रतिशत बच्चों में आता है। इसलिए 20 साल की आयु के बाद किडनी रोग के कोई लक्षण न होने पर भी पेशाब, खून और किडनी की सोनोग्राफी की जाँच डॉक्टर की सलाह अनुसार 2 से 3 साल के अंतराल पर नियमित रूप से करानी चाहिये। प्रारभिंक निदान के पश्चात् खान - पान में परहेज, खून के दबाव पर नियंत्रण, पेशाब के संक्रमण का त्वरित उपचार आदि की मदद से किडनी खराब होने की प्रक्रिया धीमी की जा सकती है।

6. बच्चों में मूत्रमार्ग के संक्रमण का उचित उपचार

बच्चों में अगर बार - बार बुखार आता हो, उनका वजन नहीं बढ़ता हो, तो इस के लिए मूत्रमार्ग में संक्रमण जिम्मेदार हो सकता है। बच्चों में मूत्रमार्ग के संक्रमण का शीघ्र निदान तथा उचित उपचार महत्वपूर्ण है। अगर निदान व उपचार में विलंब होता है, तो बच्चे की विकास हो रही किडनी में अपूरणीय क्षति हो सकती है।

यह याद रखना चाहिए की मूत्रमार्ग का संक्रमण किडनी को नुकसान पहुँचा सकता हैं। विशेषकर तब, जब इसका निदान देर से एवं उचित न हुआ हो। इस तरह के नुकसान से भविष्य में किडनी में जख्म, किडनी का कमजोर विकास, उच्च रक्तचाप और किडनी फेल्योर होने की संभावनाएं हो सकती है। इस तरह के नुकसान के कारण भविष्य में किडनी के धीरे-धीरे खराब होने का भय रहता है (किन्तु वयस्कों में मूत्रमार्ग के संक्रमण के कारण किडनी खराब होने का भय कम है)। कम उम्र के आधे से ज्यादा बच्चों में, पेशाब में संक्रमण का मुख्य कारण मूत्रमार्ग में जन्मजात क्षति या रुकावट होती है।

इस प्रकार के रोगों में समय पर एवं त्वरित उपचार कराना जरुरी है। उपचार के आभाव से किडनी खराब होने की संभावना रहती है। संक्षेप में, बच्चों में किडनी खराब होने से बचाने के लिए मूत्रमार्ग के संक्रमण का शीघ्र निदान तथा उपचार और संक्रमण होने के कारण का निदान और उपचार अत्यंत आवश्यक है।

बचपन में 50% मूत्रमार्ग में संक्रमण के मरीजों का मुख्य कारण वेसाईको यूरेट्रेाल रिफ्लक्स (VUR) है। मूत्रमार्ग में संक्रमण से प्रभावित बच्चों में नियमित जाँच और समय पर उचित उपचार विशेष रूप से अनिवार्य होता है।

7. वयस्कों में बार - बार पेशाब के संक्रमण का उचित उपचार

किसी भी उम्र में संक्रमण की तकलीफ अगर बार - बार हो और दवा से भी परिस्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही हो, तो इसका कारण जानना जरूरी है। इस का कारण मूत्रमार्ग में रूकावट, पथरी वगैरह हो तो समय पर उचित उपचार से किडनी को संभवित नुकसान से बचाया जा सकता है।

8. पथरी और बी. पी. एच. का उचित उपचार

प्रायः किडनी अथवा मूत्रमार्ग में पथरी का निदान होने के पश्चात् भी कोई खास तकलीफ न होने के कारण मरीज उपचार के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। इसी तरह बड़ी उम्र में प्रोस्टेट की तकलीफ (बी. पी. एच.) के कारण उत्पन्न लक्षणों के प्रति मरीज लापरवाह रहता है। ऐसे मरीजों में लम्बे समय के पश्चात् किडनी को नुकसान होने का भय रहता है। इसलिए समय पर डॉक्टर के सलाह के अनुसार उपचार कराना जरुरी है।

9. कम उम्र में उच्च रक्तचाप के लिए जाँच

सामान्यतः 30 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप एक असामान्य लक्षण है। इसके अंतर्निहित कारण को जानने के लिए एक विस्तृत जाँच की आवश्यकता होती है। कम आयु में उच्च रक्तचाप का सबसे महत्वपूर्ण कारण किडनी रोग है। इसलिए कम उम्र में उच्च रक्तचाप होने पर किडनी की जाँच अवश्य करवानी चाहिए।

10. एक्यूट किडनी फेल्योर के कारणों का शीघ्र उपचार

अचानक किडनी खराब होने के मुख्य कारणों में दस्त, उलटी होना, मलेरिया, अत्यधिक रक्तस्राव, खून में गंभीर संक्रमण, मूत्रमार्ग में अवरोध इत्यादि शामिल हैं। इन सभी समस्याओं का शीघ्र, उचित और संपूर्ण उपचार कराने पर किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है।

11. डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा का उपयोग:

सामान्यतः ली जानेवाली दवाइयाँ में कई दवाइँ (जैसे की दर्दशामक दवाइँ) लंबे समय तक लेने से किडनी को नुकसान होने का भय रहता है। कई दवाओं का व्यापक रूप से विज्ञापन होता है परन्तु इनके हानिकारक परिणामों का शायद ही खुलासा होता है। सामान्यतः शरीर के दर्द के लिए और सिर दर्द के लिए दर्दनाशक दवाइयों के अंधधुंध प्रयोग से बचें। इसलिए अनावश्यक दवाईयाँ लेने की प्रवृति को टालना चाहिए तथा आवश्यक दवाइँ डॉक्टर की सलाह के अनुसार निर्धारित मात्रा और समय पर लेना ही लाभदायक होता है। सबी आयुर्वेदिक दवाईयाँ सुरक्षित हैं - यह एक गलत धारणा है। कई भारी धातुओं की भस्म किडनी को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती है।

12. एक किडनेवाले व्यक्तियों में सावधानियाँ

एक किडनी से भी मनुष्य एक सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है। एक किडनी वाले, व्यक्ति को अत्यधिक नमक के सेवन एवं उच्च प्रोटीनयुक्त आहार से बचना चाहिए और अकेली किडनी पर किसी भी प्रकार की चोट से बचना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है की ऐसे मरीजों की साल में एक बार नियमित चिकित्सा जाँच होनी ही चाहिए। निश्चित रूप से किडनी की कार्यक्षमता को जाँचने और परखने के लिए हर वर्ष कम से कम एक बार चिकित्स्क से परामर्श लेना चाहिए। रक्तचाप, रक्त परीक्षण और पेशाब की जाँच करवानी चाहिए और यदि जरा भी शक हो तो किडनी की अल्ट्रासोनोग्राफी अवश्य करवानी चाहिए। एक किडनेवाले व्यक्तियों को पानी अधिक पीना, पेशाब के अन्य संक्रमण का शीध्र एवं उचित उपचार कराना और नियमित रूप से डॉक्टर को दिखाना अत्यंत आवश्यक है।