किडनी के रोगों से संबंधित सर्वप्रथम संपूर्ण पुस्तक
सुरक्षा किडनी की
किडनी के रोगों की रोकथाम एवं चिकित्सा संबंधी संपूर्ण जानकारियाँ
डॉ. संजय पंडया
एम. डी. (मेडिसिन)
डी. एन. बी. (नेफ्रोलॉजी)
कंसल्टिंग नेफ्रोलॉजिस्ट
डॉ शुभा दुबे
एम. डी. (मेडिसिन)
डी. एम. डी. एन. बी. (नेफ्रोलॉजी)
कंसल्टिंग नेफ्रोलॉजिस्ट
                         
                    
                       
                            
                            सुरक्षा किडनी की
प्रकाशक
समर्पण किडनी फाउन्डेशन
समर्पण हॉस्पिटल, भूतखाना चौक, 
राजकोट 360002 (गुजरात, भारत) 
E-mail: saveyourkidney@yahoo.co.in
© समर्पण किडनी फाउन्डेशन
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प्रथम संस्करण- 2008 : 3000 प्रतियाँ
पुनर्मुद्रण- 2008 (3000 प्रतियाँ), 2009 (4000 प्रतियाँ), 2010 (3000 प्रतियाँ), 2010 (3000 प्रतियाँ), 2012 (3000 प्रतियाँ), 2014 (3000 प्रतियाँ), 2015 (3000 प्रतियाँ) द्वितीय संस्करण - 2016
ISBN-978-81-924049-0-5
लेखक
डॉ. संजय पंडया  - एम. डी. (मेडिसिन), डी. एन. बी. (नेफ्रोलॉजी)
कंसल्टिंग नेफ्रोलॉजिस्ट
समर्पण हॉस्पिटल भूतखाना चौक,
राजकोट, 360002 (गुजरात)
डॉ शुभा दुबे   - एम. डी. (मेडिसिन), डी. एम. , डी. एन. बी. (नेफ्रोलॉजी)
कंसल्टिंग नेफ्रोलॉजिस्ट
विद्या हॉस्पिटल एण्ड किडनी सेंटर, 
शंकर नगर, मैन रोड,  
रायपुर - 492007 छत्तीसगढ़
                         
                    
                       
                            
                            समर्पित
किडनी की सुरक्षा के लिए चिंतित हर व्यक्ति 
एवं किडनी के मरीजों को 
जिन्होंने मुझे यह पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया
                         
                    
                       
                            
                            विवरण 
भाग : 1  किडनी के बारे में प्रारंभिक जानकारी 
- परिचय 
 
- किडनी की रचना और कार्य
 
- किडनी के रोगों के लक्षण
 
- किडनी के रोगों का निदान
 
- किडनी के रोग
 
- किडनी के रोगों के संबंध में गलत धारणाएं और हकीकत 
 
- किडनी को सुरक्ष के उपाय
 
भाग : 2  किडनी के मुख्य रोग और उनका उपचार 
किडनी फेल्योर
- किडनी फेल्योर क्या है
 
- एक्यूट किडनी फेल्योर
 
-  क्रोनिक किडनी डिजीज और उसके कारण
 
-  क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण और निदान
 
-  क्रोनिक किडनी डिजीज के उपचार
 
-  डायालिसिस
 
- किडनी प्रत्यारोपण
 
                         
                    
                       
                            
                            किडनी के अन्य मुख्य रोग
	 - डायाबिटीज और किडनी
 
- 	 वंशानुगत रोग: पोलिसिस्टिक किडनी डिजीस
 
- 	 एक ही किडनी होना
 
- 	 मूत्रमार्ग का संक्रमण
 
- 	 पथरी की बीमारी
 
- 	 प्रोस्टेट की तकलीफ - बी. पी. एच.
 
- 	दवाओं के कारण होनेवाली किडनी की समस्याएं
 
बच्चों में किडनी के रोग
-  नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम
 
-  बच्चों में किडनी और मूत्रमार्ग का संक्रमण
 
-  बच्चों का रात में बिस्तर गीला होना
 
किडनी और आहार
-  किडनी फेल्योर के मरीजों का आहार
 
- 	मेडिकल शब्दावली एवं संक्षिप्त शब्दो की जानकारियाँ
 
                         
                    
                       
                            
                            भूमिका  
क्या आपके गुर्दे स्वास्थ्य हैं?
आप गुर्दे (किडनी) के स्वास्थ्य की दृष्टि से जोखिम के श्रेणी में आते हैं यदि आप शारीरिक रूप से मोटे हैं अथवा धूम्रपान करते हैं अथवा आपको मधुमेह, उच्च रक्तचाप रहता है अथवा आप 50 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं, ऐसे में आपको चाहिए कि आप अपने गुर्दों के स्वास्थ्य कि जाँच एक बार अवश्य करवा लें। ऐसा करके आप स्वस्थ गुर्दों को खराब होने से बचा सकेंगे। कहते हैं इलाज से बेहतर है रोग कि रोकथाम। यदि समय रहते गुर्दे के स्वास्थ्य के बारे में जाँच करा ली जाए तो अनेक गंभीर बीमारियों से आप अपने शरीर को बचा सकते हैं। विश्व स्तर पर आज मनुष्य के स्वास्थ को संक्रामक रोगों कि अपेक्षा उच्च रक्त चाप, ह्रदय संबंधी रोग, मधुमेह व गुर्दे की बीमारियों से ज्यादा खतरा है। आज प्रत्येक 10 में से 1 वयस्क व्यक्ति गुर्दे की किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है।
एक व्यक्ति जो साधारणतः देखने में लगता है कि स्वस्थ है और जाँच में अचानक पता लगता है कि उसे क्रोनिक किडनी डिजीज है। क्रोनिक किडनी डिजीज में गुर्दे की क्रियाशीलता घट जाती है। परिणामतः गुर्दे बेकार हो जाते हैं। फिर विकल्प बचता है केवल महँगी व कष्टकारी डायालिसिस अथवा अन्ततः गुर्दा प्रत्यारोपण। दूसरा खतरा गुर्दे की इस अस्वस्थ अवस्था से रोगी को ह्रदय व रक्त धमनियों कि बीमारी का होना, जिससे असमय मृत्यु होने का खतरा सौ गुना ज्यादा रहता है। मानव जाती में टाइप 2 डायाबिटीज के फैलते हुए रोग से इस प्रकार के खतरे और भी बढ़ गए हैं।
ज्यादातर गुर्दे के रोगियों में क्रोनिक किडनी रोग कि प्रारंभिक अवस्था बगैर किसी जाँच के निकल जाती है।
- 	गुर्दे की प्रारंभिक अवस्था में की गई जाँच में यदि कोई खराबी पाई भी जाती है तो उसका इलाज करके उसे संभाला जा सकता है। परन्तु देर
 
                         
                    
                       
                            
                            से पता चलने पर गुर्दे क्रोनिक किडनी डिजीज की श्रेणी में चले जाते हैं, जहाँ पर इसका इलाज दुरूह हो जाता है अथवा वे पूर्णतया बेकार भी हो सकते हैं।
- भारत जैसे विकासशील देश में मात्र 10 % ही ऐसे रोगी हैं जो प्रत्यारोपण जैसा अत्याधिक महँगा इलाज करवा पाते हैं। ऐसे में एकमात्र सुलभ उपाय है प्रारंभिक जाँच द्वारा रोकथाम।
 
- ध्यान रहे - प्रारंभिक अवस्था में गुर्दे की बीमारी को इलाज द्वारा ठीक किया जा सकता है। ऐसे में इस बात का इन्तजार मत करिए कि आपको रोग के लक्षण दिखाए दें तभी जाँच कराएं। यदि आप ऊपर बताए गए गुर्दे  कि दृष्टि से जोखिम कि श्रेणी में आते हैं, तो एक बार अपने खून व पेशाब कि जाँच अवश्य करवानी चाहिए। 
 
"सुरक्षा किडनी की" ऐसी पुस्तक है जो गुर्दे के रोगों के रोकथाम, डायालिसिस, गुर्दा प्रत्यारोपण, भोजन में परहेज और गुर्दा रोग के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियों से परिपूर्ण है। मैं डॉ. संजय पंडया को उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए बधाई देता हूँ। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने मरीजों और जन साधारण के लिए  अत्यन्त आवश्यक जानकारियाँ उपलब्ध करा दी है जो की गुर्दा रोग की महमारी की रोकथाम की दिशा में एक उत्तम कदम है। राष्ट्रभाषा हिंदी में यह संस्करण जन मानस को दिशा निर्देश देने और उन्हे समझाने में सहायक होगा। डॉ. संजय पंडया की यह पुस्तक, मुझे विश्वास है चिकिस्तकों, सहायक उपचारिकाओं और दूसरे पैरामेडिकल स्टाफ के लिए भी अत्यंत उपयोगी होगी।
  भवदीय
डॉ. राज कुमार शर्मा,
FAMS, FASN, Secretary, Indian Society of Nephrology 
विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी विभाग 
 संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ।
                         
                    
                       
                            
                            आइए, किडनी के रोगों को रोकें
"सुरक्षा किडनी की" इस पुस्तक के जरिये किडनी के रोगों को समझाना और उन्हें रोकने के लिए मार्गदर्शन करना ही हमारा विनम्र प्रयास है।
पिछले कुछ सालों के दौरान किडनी के रोगों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। सिर्फ भारत में करीब 10 करोड़ लोग किडनी के रोगों से पीड़ित हैं। क्रोनिक किडनी डिजीज के अत्याधिक मरीजों में यह रोग ठीक हो सके ऐसी चिकित्सा फिलहाल उपलब्ध नहीं है।
ऐसे मरीजों में किडनी डिजीज का निदान यदि बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही हो जाए, तो मरीज की चिकित्सा का खर्च कम हो सकता है एवं उपचार का फायदा ज्यादा तथा लम्बे समय तक मिल सकता है। परन्तु आम जनता में किडनी के रोगों के लक्षणों की जानकारी और जागृति का अभाव रहता है। परिणामतः रोग की शुरुआत में ही निदान होने की संभावनाएं बहुत ही कम मरीजों में होती है। ऐसे मरीजों की किडनी जब ज्यादा खराब हो जाती है, तब डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण जैसे उपचार अतिआवश्यक होते हैं, लेकिन इन उपचारों के भारी खर्च को उठाना मरीज या उसके परिवारवालों के लिये आसान बात नहीं रहती। इसलिए किडनी के रोगों की रोकथाम एवं बीमारी होने पर प्रारंभ से ही उपचार करना शुरू कर दें यही किडनी की सुरक्षा का एकमात्र विकल्प है।
वर्तमान समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को किडनी के रोगों से मुक्त रहना आवश्यक है। उन्हें इस संबंध में सजग करना ही इस पुस्तक लेखन का मुख्य उद्देश्य है। 
किडनी के रोगों का नाम सुनते ही मरीज और उसके परिवारवालों की धड़कनें बढ़ जाती है। स्वाभाविक है की वे उस समय किडनी के रोगों के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हों, परन्तु सामान्यतः डॉक्टर भी मरीज के उपचार में इतने व्यस्त होते हैं की वे उन्हें विस्तृत जानकारियाँ देने का समय नहीं जुटा पाते।
हमें पूरी उम्मीद है की यह पुस्तक डॉक्टर और मरीजों को जोड़नेवाली कड़ी
                         
                    
                       
                            
                            बनेगी। इस पुस्तक में किडनी के सभी मुख्य रोगों के लक्षण, निदान, रोकथाम एवं उपचार को समाविष्ट किया गया है। इसके अलावा किडनी के रोगियों के आहार में आवश्यक परहेज और उनकी पसंद के बारे में भी संपूर्ण जानकारियाँ दी गई है। किन्तु प्रत्येक पाठक के लिए यह याद रखना जरुरी है की इस पुस्तक में दी गई जानकारियाँ, डॉक्टर की सलाह या उपचार का विकल्प कदापि नहीं है। यह जानकारियाँ तो डॉक्टर के उपचार की पूरक है। इस पुस्तक को पढ़कर चिकित्सकीय उपचार एवं परहेज में स्वयं परिवर्तन करना खतरे से खाली नहीं है।
मूलतः यह पुस्तक गुजराती में 'तमारी किडनी बचाओ' शीर्षक से उपलब्ध है। किन्तु, देश के अन्य भू-भाग में बसनेवाले लाखों हिंदी भाषियों की सुविधा हेतु यह पुस्तक हिंदी में प्रस्तुत कर रहे हैं। इस हिंदी संस्करण को इस तरह का रूप देने में राजकोट के श्री संजय तिवारी (अनुभाग अधिकारी, कार्यालय महालेखाकार, सिविल लेखा परीक्षा), जागृति गणात्रा, आरती जाडेजा और डॉ. मंजु जाडेजा तथा रायपुर के सुनयना मिश्रा एवं अनूप कशयप, का बहुमूल्य सहयोग हमें मिला है। मैं इन सभी दोस्तों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। इसके अतिरिक्त इस पुस्तक के प्रकाशन में कई ऐसे व्यक्ति सम्मिलित हैं, जो मेरे इतने निकट हैं की उनके प्रति आभार प्रकट करना मात्र औपचारिकता होगी।
इस पुस्तक को ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए आपके बहुमूल्य सुझावों का हम स्वागत करेंगे। यदि आपको यह पुस्तक अच्छी लगी हो या उपयोगी महसूस हुई हो, तो अपने मित्रों / सम्बन्धियों को भी इसे पढ़ने का सुझाव दीजिएगा।
डॉ. संजय पंडया
राजकोट
डॉ शुभा आनंद दुबे
रायपुर
यह पुस्तक सिर्फ मार्गदर्शन के लिए है। डॉक्टर की सलाह के बिना दवाई लेना या उसमें परिवर्तन करना जानलेवा हो सकता है।	
                         
                    
                       
                            
                            लेखक परिचय :
डॉ. संजय पंड्या (एम. डी., डी. एन. बी. नेफ्रोलॉजी) नेफ्रोलॉजिस्ट
- डॉ. संजय पंडया ने अपनी एम. डी. मेडिसिन की उपाधि सन् 1986 में एम. पी. शाह मेडिकल कॉलेज, जामनगर से प्राप्त की।
 
- तत्पशचात् डॉ. पंडया ने किडनी से संबंध्दित सुपरस्पेश्यालिटी डिग्री सन् 1989 में अहमदाबाद के किडनी इन्स्टीट्यूट (IKDRC) में डॉ. एच. एल. त्रिवेदी के मार्गदर्शन में प्राप्त की।
 
- डॉ. पंडया पिछले 18 सालों से गुजरात के राजकोट में जाने मने किडनी रोग विशेषज्ञ नेफ्रोलॉजिस्ट के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। आप कुशल नेफ्रोलॉजिस्ट तो हैं ही साथ एक  समर्पित अध्यापक और प्रतिष्ठित लेखक भी हैं।
 
- आपने 'प्रेक्टिकल गाईडलाइन्स ऑन फ्लूइड थेरेपी' (Practical Guidelines on Fluid Therapy) नामक पुस्तक डॉक्टरों के लिए लिखी है। भारत में इस विषय की यह प्रथम पुस्तक होने के कारण इस पुस्तक को देश में विशेष ख्याति मिली है। भारत के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में आपके फ्लूइड थेरेपी के विषय के प्रवचनों को अत्यंत प्रशंसा एवं प्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई है।
 
- डॉ. संजय पंड्या ने किडनी रोगों की रोकथाम व उपचार से संबंधित आम जनता की जागृति के लिए गुजराती (2006) और हिंदी (2008) भाषा में पुस्तक का प्रकाशन किया एवं किडनी वेबसाइट (2010) की स्थापना की। उनकी लिखी पुस्तक एवं वेबसाइट को पुरे देश में अत्यधिक प्रतिक्रियायें प्राप्त हुई।
 
- देश एवं विश्व के जानेमाने एवं समर्पित किडनी रोग विशेषज्ञों ने डॉ. पंड्या की इस मुहीम की सराहना करते हुए उससे जुड़कर उसमें कार्य करने की इच्छा व्यक्त की। इसके परिणामस्वरूप सिर्फ पाँच वर्षों में यह पुस्तक आठ भाषाओँ (कन्नड़, कच्छी, मलयालम, मराठी, पंजाबी, सिंधी, तमिल, व तेलगू) एवं बारह अंतर्राष्ट्रीय भाषाओँ (अरेबिक, बंगला, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, इटालियन, जापानी, पुर्तगाली, रुसी, स्पेनिश, स्वाहिली एवं उर्दू) में प्रकाशित की जा चुकी है एवं वेबसाइट उन्हीं भाषाओं में तैयार हो गई है। 
 
- www.KidneyEducation.com , विश्व की अधिकतम भाषाओं में उपलब्ध मेडिकल वेबसाइट है जिसे पाँच वर्षों में दो करोड़ से भी ज्यादा बार देखा जा चूका है। 
 
- यह वेबसाइट जिसे डॉ. संजय पंड्या और विश्व के 65 ख्यातिप्राप्त किडनी रोग विशेषज्ञों के विशेष प्रयासों से तैयार किया गया है, जिसकी विशेषता है की उससे 22 भाषाओं में किडनी की पुस्तक को देखा, पढ़ा एवं मुद्रित किया जा सकता है और वह भी बिल्कुल निःशुल्क।
 
                         
                    
                       
                            
                            डॉ. शुभा दुबे (एम. डी., डी. एम., डी. एन. बी. नेफ्रोलॉजी)
डॉ. शुभा दुबे अविभाजित मध्यप्रदेश एवं वर्तमान में छत्तीसगढ़ की सर्वप्रथम किडनी रोग विशेषज्ञ हैं जिन्होंने महिला होकर भी देश की, किडनी के क्षेत्र में सर्वोच्च डिग्री हासिल की।
डॉ. शुभा दुबे ने मेडिसिन में एम. डी. की डिग्री गवर्नमेन्ट मेडिकल कॉलेज, नागपुर से 1985 में प्राप्त के पश्चात अहमदाबाद (गुजरात) के ख्यातिप्राप्त किडनी इंस्टीट्यूट, आई. के. डी. आर. सी. से डी. एम.  (नेफ्रोलॉजी) की एवं वेलोर मेडिकल कॉलेज से डी. एन. बी. (नेफ्रोलॉजी) की उपाधि प्राप्त की।
सन 1990 में उन्हें गवर्नमेन्ट मेडिकल कॉलेज जबलपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया गया जहाँ उन्होंने डायालिसिस यूनिट की शुरूआत की। पारिवारिक कारणों एवं छत्तीसगढ़ से विशेष स्नेह  के कारण 1991 में उन्होंने रायपुर में विधा हॉस्पिटल एण्ड किडनी सेंटर की स्थापना की एवं इस अंचल के मरीजों के लिए समस्त किडनी रोगों का उपचार एवं डायालिसिस की सुविधा प्रदान की। विगत 25 वर्षों में उन्होंने हजारों किडनी मरीजों की प्राण रक्षा की है।
डॉ. शुभा दुबे की विशेष रूचि उच्च रक्तचाप एवं मधुमेह से होने वाली किडनी की समस्याओं की रोकथाम व इस क्षेत्र में मरीजों को शिक्षित करने में है। आज वे संपूर्ण छत्तीसगढ़ में किडनी के क्षेत्र में एक विख्यात डॉक्टर के रूप में पहचानी जाती है। उनके सद्कार्यों के परिणाम स्वरूप उन्हें छत्तीसगढ़ चेम्बर्स ऑफ कामर्स द्वारा महिला शक्ति सम्मान प्रदत्त किया गया।
डॉ. शुभा दुबे  इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी, इंडियन सोसाइटी ऑफ आर्गन ट्रान्सप्लान्टेशन एवं इंडियन सोसाइटी ऑफ पेरीटोनियल डायालिसिस की सक्रिय सदस्य हैं।
ये महिला समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत की तरह हैं जहाँ महिलायें सिर्फ परिवार के अंदर ही नहीं बल्कि चिकित्सा के क्षेत्र में किडनी जैसी जटिल विषय में भी अपना योगदान दे सकती हैं।
                         
                    
                       
                            
                            इस पुस्तक का उपयोग किस तरह किया जाय?
इस पुस्तक के दो भाग है
भाग : 1 
इस भाग में किडनी और उसके रोगों की रोकथाम के बारे में प्रारंभिक जानकारियाँ हैं, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ना एवं जानना चाहिए।
भाग : 2
इस भाग को पाठकअपनी जिज्ञासा एवं आवश्यकता के अनुसार पढ़ें।
इस भाग में
- किडनी के विभिन्न मुख्य रागों केलक्षण निदान, उनकी रोकथाम और चिकित्सा की जानकारियाँ दी गई हैं।
 
- किडनी को नुकसान पहुँचानेवाले रोगों (जैसे डायाबिटीज, उच्च रक्त्चाप, पोलिसिस्टिक किडनी डिजीस आदि) तथा उनकी रोकथाम के लिये आवश्यक सावधानियों एवं जानकारियों को समाविष्ट किया गया है